मंगलवार, जनवरी 27, 2009
हमारी विमंदिता का कारण...आयोडीन की कमी
हमारे देश को आजादी हुए साठ वर्ष हो चुके हैं। इसके बावजूद पूरे देश में 70 लाख से अधिक बच्चे आयोडीन की कमी से पैदा होने वाली बीमारी से ग्रस्त हैं। देश के अधिकांश इलाके में यह समस्या देखी जा सकती है। सरकार ने आयोडीनयुक्त नमक के इस्तेमाल को जरूरी कर दिया है लेकिन देश के दूरदराज वाले कई इलाकों में साधारण नमक का अभी भी धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है।
अपने अनुभवों को बांटते हुए "शुभदा" यह बताना चाहेगी कि हाल ही में उत्तर प्रदेश के पड़होना गांव जाने का मौका मिला। इस दौरान पता चला कि एक ही परिवार के 17 बच्चे आयोडीन की कमी के शिकार हैं।
बुधवार, जनवरी 21, 2009
निःशक्त भ्रूण को जन्म दें? या नहीं....
सुनीता अरोड़ा भी शायद एक और निकिता मेहता बन जाती जिन्हें अपने 24 हफ्ते के भ्रूण का गर्भपात कराना था। उनके डॉक्टर ने अंदेशा लगा लिया था कि उनका बच्चा कुछ जटिलताओं के साथ पैदा होगा, लेकिन जब सुनीता गर्भपात करवाने पहुंची तो तो उन्हें बताया गया कि 20 हफ्ते से ज्यादा होने पर गर्भपात गैरकानूनी है।जब उनका बच्चा अमन पैदा हुआ तो उनका डर सच में बदल गया। उनके बच्चे को ‘थैलेसीमिया मेजर’ (गंभीर रक्त की बीमारी जिसमें चोट लगने पर रक्त का बहाव रुकता नहीं)।
इसका मतलब यह कि हर महीने उन्हें 10,000 रुपए अमन के रक्त आधान और दवाओं पर खर्च करने पड़ते हैं। लेकिन इतना भारी खर्च उठाना इस मध्यम वर्गीय महिला की क्षमता में नहीं है। सात साल बाद आज भी सुनिता अमन को जन्म देने पर पछताती हैं। सुनीता कहती हैं कि, “मैं बच्चे को गिराना चाहती थी, लेकिन उन्होंने कहा कि अब काफी देर हो चुकी है, इसलिए मेरे पति और मैंने बच्चे को जन्म देने का निर्णय लिया। इससे भी बुरा हमने उसे किसी और के गोद में देने का विचार किया। काश हमें यह बच्चा न होता”। क्या सुनीता को प्रकृति के विरुद्ध चले जाना था? क्या इसी में मां और बच्चा दोनों की भलाई छिपी थी? लेकिन जब मुम्बई की एक गृहिणी निकिता मेहता और उनके पति ने अजन्मे बीमार बच्चे को गिराना चाहा तो यह विवाद छिड़ गया। आश्चर्यचकित तौर पर महिलाओं ने निकिता का पक्ष लिया और उनका मत है कि एक मां को अपने बच्च को जन्म देने या नहीं देने का पूरा अधिकार होना चाहिए। लेकिन आज कई माताएं ऐसी स्थिति में हैं जिस स्थिति में कभी निकिता भी होती अगर उसने एक गंभीर हृदय बीमारी से ग्रस्त बच्चे को जन्म दिया।
तस्वीर का दूसरा पहलू
जीनत का बच्चा शफी आम बच्चों की तरह नहीं हैं क्योंकि उसके दिल में भी एक छेद है। दो शल्यचिकित्सा के बाद भी उसे ठीक होने में अभी काफी वक्त लगेगा। लेकिन अगर जीनत को अपने बच्चे की बीमारी का पहले ही पता लग जाता, तो क्या वो अपने अजन्मे बच्चे को गिरा देती? इस पर जीनत कहती हैं कि, “नहीं, वह मेरे लिए वरदान है। मैं उसे उसी रूप में पसंद करती हूं जिस रूप में भगवान ने मुझे दिया है। किसी की जिंदगी लेने का अधिकार हमें नहीं है”। हृदय के विकार से ग्रस्त एक बच्चे के पिता रफीक किदवई का कहना है कि, “हमें प्रकृति के खिलाफ नहीं जाना चाहिए। यह नियमों और जिंदगी के खिलाफ है। इस तरह हम और हमारे बच्चे जिंदगी की मुश्किलों से लड़ने में सक्षम हो पाएंगे”। निकिता मेहता का नाम इतिहस में दर्ज हो जाएगा क्योंकि वो एक ऐसी मां के रूप में जानी जाएगी जिसने अपने बीमार अजन्मे बच्चे का गर्भपात कराने के लिए भारतीय न्यायपालिका का दरवाजा खटखटाया। भले ही न्यायालय ने उन्हें इस बात की इजाजत नहीं दी, लेकिन प्रकृति उनके साथ थी और निकिता का अपने आप ही गर्भपात हो गया। प्रकृति के खिलाफ जाना चाहिए कि नहीं, इसका कोई निश्चित जवाब भले ही नहीं मिले, लेकिन निकिता, सुनिता या जीनत जैसे माताओं की बात सुनें तो शायद सही जवाब मिल जाए।
(निलान्जला बोस की बदोलत)
सोमवार, जनवरी 05, 2009
क्या हमने समझने की कोशिश की ?
ये बच्चे कौन है? तथा इनकी अतिरिक्त आवश्यकताएं क्या है? यदि आप इन समस्याओं की प्रकृति और बच्चों की आवश्यकताओं को समझेंगे तो उनकी ठीक से मदद कर सकेंगे। चलिए ! हम उन बच्चों को सीखने की समस्याओं को तथा यह जानने का प्रयास करें कि हम उनकी कैसे मदद कर सकते है। हो सकता है कुछ बच्चों में अन्धापन, बहरापन, मानसिक पिछड़ापन जैसी गम्भीर अक्षमताएं हो अथवा इनसे सम्बन्धित दृष्टि श्रवण, वाणी, मानसिक मंदता एवं अधिगम अक्षमता जैसे दोष हों।हो सकता है ऐसे बच्चे आपके नजर में न हो, यह भी हो सकता है उनके माता-पिता हमसे सम्पर्क करने में भी हिचकिचाएं, हो सकता है उनको इसलिए भर्ती न किया हो कि वे माता-पिता की दृष्टि में विद्यालय में पढ़ने के योग्य नहीं है। या हम उनकी मदद नहीं कर सकते हैं।
बौद्धिक क्रियाकलाप का निम्नस्तर तथा विकास की मन्दगति।
दृष्टि विषयक समस्या (देखने में कठिनाई)।
श्रवण तथा वाक समस्या (सुनने तथा बोलने में कठिनाई)
हाथ-पैर का क्षतिग्रस्त होना या हाथ-पैर का न होना, अंगों की विकृति, मांसपेशियों के तालमेल में समस्या होने सेक्रियाकलाप में कठिनाई।
मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं जैसे प्रत्यक्षीकरण, अवधान, स्मृति विषयक समस्याए ।
दृष्टि तथा मांसपेशियों में तालमेल न होने से पढ़ने-लिखने, वर्ण विन्यास में कठिनाई।
माता-पिता के स्नेह में कमी।
परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा बच्चों को दूसरे बच्चों की भांति समान स्तर पर स्वीकार न किया जाना अर्थात बच्चों को हीनभावना से देखना।
सीखने के समान अवसर न मिलना तथा बातचीत करने के कम अवसर मिलना।
शिशु स्तर पर लालन-पालन के अनुपयुक्त तरीके अपनाना।
शिक्षक का बच्चे से कम लगाव होना।
सीखने की गति धीमी होने पर बच्चे के प्रति गलत धारणा बना लेना।
कक्षा में अनुकूल सामाजिक वातावरण न होना।
सामान्य बच्चों का विकलांग बच्चे के साथ प्रतिकूल व्यवहार करना।
उत्तरदायित्व निर्वहन तथा सुविधाओं की भागीदारी जैसी भावनाओं के प्रति उदासीनता होना।
बच्चों की विशिष्ट आवश्यकताओं तथा भौतिक सुविधाओं के सामंजस्य का अभाव होना।
प्राथमिक स्तर पर काम करने वाले अध्यापक यह समझ लें कि इन बच्चों की अपंगता का क्या स्वरूप है तथा किस हद तक अपंगता है, तभी वे प्राप्त जानकारी के अनुसार अन्हें शिक्षा देने के दायित्व का यथोचित रूप से निर्वहन करने के लिए तैयार हो सकेंगे। सामान्य विद्यालयों के अध्यापकों में इन बच्चों की शिक्षा संबंधी विशेष प्रकार की जरूरतों को समझने की आवश्यकता है जिससे उनकी आवश्यकता के अनुरूप अनुकूल शिक्षा को नियोजित कर सकें। इसका उत्तरदायित्व सबसे अधिक कक्षा के अध्यापकों पर आता है क्योंकि उनका इन बच्चों से सीधा सम्पर्क होता है तथा उन्हें बच्चों को ध्यान से देखने का अवसर भी मिलता ।