गुरुवार, अप्रैल 30, 2009

....और 12 साल की उम्र में बना दिया 'मॉं'

अभी एक ब्लॉग पर अन्दर तक हिला देने वाली ख़बर पढ़ी। फुटपाथ पर कचरा बीनने वाली एक बिन मां की बच्ची को किसी ने मां बना दिया। न बच्ची को और न ही उसके पिता को इसका पता चला, जब बच्ची को पेट में दर्द हुआ और फुटपाथ पर ही एक बच्चे का जन्म हो गया, तब समाज की वो तस्वीर सामने आई जो बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर रही है। पूरी सचित्र ख़बर के लिए आप उस ब्लॉग तक ख़ुद जाएँ यही बेहतर होगा। ब्लॉग का पता है http://oursocialaudit.blogspot.com/

ज्यादा उम्र में भी मां बनना अब आसान

करियर की महत्वाकांक्षा पूरी करने और मां बनने में से एक विकल्प चुनने के लिए मजबूर महिलाओं के लिए खुशखबरी है। अब उम्रदराज होने पर भी महिलाओं के मां बनने की सम्भावना बढ़ गई है। नए वैज्ञानिक शोध के अनुसार मानव जाति के विकास की प्रक्रिया में पूर्वजों के मुकाबले अब 30 से 50 वर्ष की उम्र में प्रजनन सम्बन्धी बीमारियों से सुरक्षा ज्यादा मजबूत हो गई है। ब्रिटिश अखबार डेली टेलीग्राफ में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले पांच हजार वर्षों में मानवजाति में पिछले किसी भी काल के मुकाबले आश्चर्यजनक रूप से 100 प्रतिशत से ज्यादा तेजी से विकास हुआ है। इस विकास की बदौलत ऐसे गुणसूत्रों का विकास हुआ है जिनमें बीमारी से लडऩे की क्षमता पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है। इससे महिलाओं की ज्यादा उम्र में भी मां बनना सम्भव है और प्रजनन क्षमता ज्यादा उम्र तक बरकरार रह सकती है।

शोधकर्ता प्रोफेसर जॉन हॉक्स के अनुसार मानव विकास की सतत प्रक्रिया के दबाव के कारण मोटापा, हृदय सम्बन्धी बीमारी, मधुमेह जैसी बीमारियों से ग्रसित होने की सम्भावना कम हो गई है। इन बीमारियां के कारण उम्रदराज होने के बाद प्रजनन क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। लेकिन इन बीमारियों से सुरक्षा होने के कारण उम्रदराज होने पर भी प्रजनन क्षमता बनी रहेगी।

ज्यादा उम्र में भी मां बनना भले ही संभव हो लेकिन इसमें भी कुछ मामलों में दिक्कत हो सकती है, मसलन अधिक उम्र वाली मां की संतान अधिक वजन वाली हो सकती है,उनके बच्चे भी सामान्य से अधिक वजनी या अधिक खाने वाले हो सकते हैं। अधिक विवरण के लिए कल इसी ब्लाग पर, ठीक इसी समय फिर मिलेंगे, अभी इजाजत दें। शेष शुभ....-इति आपकी 'शुभदा'

बुधवार, अप्रैल 29, 2009

बेटे को जन्म देने के बाद अपेक्षाकृत अधिक तनाव


यूं तो आपने पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए मन्नत मांगते हुए कई लोगों को देखा होगा, लेकिन फ्रांसीसी वैज्ञानिकों की मानें तो बेटे को जन्म देने के बाद माताएं अपेक्षाकृत अधिक तनाव में रहने लगती हैं।यही नहीं कुछ माताओं की तो जीवनशैली ही निम्न स्तर की हो जाती है। हाल ही में 'नैंसी विश्वविद्यालय' के शोधकर्ता क्लाड डी टॉयची के नेतृत्व में शोधकर्ताओं के एक दल ने 191 माताओं पर एक अध्ययन किया था। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं को ज्ञात हुआ कि पुत्रों को जन्म देने वाली 10 में से सात महिलाएं लड़कियों को जन्म देने वाली महिलाओं की अपेक्षाएं अधिक तनाव में रहती हैं और प्रसव के बाद उनकी जीवनशैली भी काफी बदल जाती है।

'बीबीसी' के ऑनलाइन संस्करण पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक अध्ययन के दौरान 17 महिलाओं में से अधिक तनाव में रहने वाली 13 महिलाएं ऐसी थी, जिन्होंने बेटों को जन्म दिया था, जबकि केवल चार ऐसी महिलाएं थी जो कि बेटियों के जन्म के बाद तनावपूर्ण जीवन व्यतीत कर रही थी।हालांकि, वैज्ञानिक फिलहाल महिलाओं के बीच पाए जाने वाले इस अंतर के कारणों का पता नहीं लगा सके हैं। शोधकर्ता टायची कहते हैं कि, 'इस अध्ययन से उस तथ्य को बल मिलता है जिसके अंतर्गत कहा जाता है कि भ्रूण का लिंग, माताओं की जीवनशैली की गिरावट प्रसवोपरांत तनाव बढ़ाने का अहम कारक होता है।

इस शोध को सही माने तो अधिक उम्रदराज महिलाएं अधिक तनाव में रहती हैं, ऐसे में अगर अधिक उम्र में गर्भधारण होने पर पुत्र प्राप्ति के अवसर अधिक हो सकते हैं? जो भी हो अधिक उम्र में मां बनने के अवसर आज पहले की अपेक्षा कहीं अधिक हैं। इस पर चर्चा होगी कल। अधिक विवरण के लिए कल इसी ब्लाग पर, ठीक इसी समय फिर मिलेंगे, अभी इजाजत दें। शेष शुभ....-इति आपकी 'शुभदा'

मंगलवार, अप्रैल 28, 2009

पुत्र पैदा नहीं कर पाती प्रदूषण झेलने वाली महिलाएं


विशेष प्रकार का उच्चस्तरीय प्रदूषण झेलने वाली महिलाएं लड़के को जन्म नहीं दे सकतीं। सान फ्रांसिस्को में गर्भवती महिलाओं पर किए गए एक शोध से यह बात निकलकर सामने आई है। विज्ञान समाचार पत्र 'साइंसडेली' में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक जो महिलाएं 'पॉलीक्लोरिनेटेड बाईफिनाइल्स' (पीसीबी) का उच्चस्तरीय प्रदूषण झेलती हैं, उनमें लड़कों को जन्म देने की क्षमता काफी कम हो जाती है।

गौरतलब है कि पीसीबी पर 1950 और 1960 के दशक में प्रतिबंध लगा दिया गया था। पीसीबी कारखानों में बिजली उपकरणों कूलिंग (शीतलक) के तौर पर उपयोग में लाए जाते हैं। इनका उपयोग वॉरनिश और चाक बनाने में भी होता है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पीसीबी बच्चों में लिंग अनुपात को प्रभावित करते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक जो महिलाएं पीसीबी का उच्चस्तरीय प्रदूषण झेलती हैं, उनमें लड़कों को जन्म देने की क्षमता 33 फीसदी कम हो जाती है।

लेकिन, पुत्र का मतलब सब कुछ अच्छा-अच्छा ही नहीं होता, बेटे को जन्म देने के बाद माताएं अपेक्षाकृत अधिक तनाव में रहने लगती हैं। अधिक विवरण के लिए कल इसी ब्लाग पर, ठीक इसी समय फिर मिलेंगे, अभी इजाजत दें। शेष शुभ....-इति आपकी 'शुभदा'

सोमवार, अप्रैल 27, 2009

गर्भावस्था में संगीत से शान्ति


क्या गर्भावस्था का संगीत से कोई रिश्ता हो सकता है? हाल ही में किए गए एक शोध में इस प्रश्न का जवाब 'हां' में दिया गया है। ताईवान के कोहसिउंग चिकित्सा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने शोध में गर्भवती महिलाओं को दो समूहों में बांटा। उनमें से 116 को गीत-संगीत वाली सीडी और 120 को सामान्य देखभाल मुहैया कराई गई। इस शोध के अंर्तगत, पहले समूह की महिलाओं को चार-चार सीडी दी गई। पहली सीडी में लुलाबीज के रॉक गीत थे तो दूसरी में बीथोवेन और डेबस्सी का शास्त्रीय संगीत। तीसरी सीडी में कुछ प्राकृतिक ध्वनियां थीं और चौथी में चीन की नर्सरी राइम्स और कुछ गीत शामिल थे।

अध्ययन में पाया गया कि जिन महिलाओं ने लुल्लाबीज, बीथोवेन और प्राकृतिक ध्वनियों वाली सीडी सुनीं उन्होंने अन्य महिलाओं की तुलना में कहीं अधिक शांति महसूस की।अध्ययन का नेतृत्व कर रहे शोधकर्ता चुंग-हे चेन ने बताया कि, 'गर्भावस्था का संगीत सगीत सुनने वाली गर्भवती महिलाओं ने अन्य महिलाओं की तुलना में खुद पर दबाव कम महसूस किया।

संगीत से केवल शांति ही नहीं कुछ खास स्थितियों में नर या मादा भ्रूण की भूमिका भी तय होती है। हालांकि हम जानते हैं कि भूण के नर या मादा होने की प्रक्रिया गर्भधारण के समय प्राकृतिक रूप से तय होती है। फिर भी पुत्र या पुत्री जन्म होने के लिए कुछ कारण काफी हद तक जिम्मेदार होते हैं, कल से इस मसले पर कुछ चर्चा हो सकती है, अधिक विवरण के लिए कल इसी ब्लाग पर, ठीक इसी समय फिर मिलेंगे, अभी इजाजत दें। शेष शुभ....-इति आपकी 'शुभदा'

रविवार, अप्रैल 26, 2009

अत्यधिक व्यायाम करने से भी समस्या

अपने एक नए शोध में शोधकर्ताओं ने कहा है कि गर्भावस्था के दौरान कम से कम व्यायाम करने चाहिए। अत्यधिक व्यायाम करने से काफी समस्या आ सकती है। गौरतलब है कि गर्भावस्था के दौरान व्यायाम करना आवश्यक माना जाता है, लेकिन अत्यधिक व्यायाम खतरनाक साबित हो सकता है। अपने इस नए शोध में शोधकर्ताओं ने कहा है कि महिलाओं को प्रतिदिन गर्भावस्था के दौरान व्यायाम करना चाहिए, लेकिन उतना ही व्यायाम करना चाहिए जितना कि आवश्यक है।

शोधकर्ताओं ने लगभग 90 हजार गर्भवती महिलाओं का साक्षात्कार लिया। इस साक्षात्कार में इन लोगों ने व्यायाम को लेकर अलग-अलग सवाल पूछे। साक्षात्कार में उन महिलाओं को भी शामिल किया गया जो गर्भावस्था के दौरान व्यायाम नहीं करती हैं। इसके साथ ही वैसी गर्भवती महिलाओं से भी बात की गई जो सप्ताह में सात घंटे तक व्यायाम करती हैं। जो महिलाएं सात घंटे से ज्यादा समय व्यायाम और खेल आदि में बिताती हैं, उन्हें गर्भावस्था को लेकर कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शोधकर्ताओं ने कहा है कि इस प्रकार ज्यादा व्यायाम या खेल में समय बिताने से गर्भवती महिलाओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। शोधकर्ताओं ने कहा है कि गर्भावस्था के दौरान तैराकी ज्यादा फायदेमंद है। इससे कोई समस्या नहीं आती है। गौरतलब है कि गर्भवती महिलाओं के बीच तैराकी काफी लोकप्रिय माना जाता है। सरकारी विभाग ने भी गर्भवती महिलाओं से इस संबंध में सलाह देते हुए कहा है कि गर्भावस्था के दौरान अत्यधिक व्यायाम से इन्हें बचना चाहिए। उन्हें उतना ही व्यायाम करना चाहिए जितना कि उनके स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।

व्यायाम के साथ ही और भी बहुत कुछ है जो गर्भकाल में सहायक होता है। एक स्वस्थ शिशु को जन्म देने के लिए संगीत की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। कल इस बात पर चर्चा करेंगे कि क्या गर्भावस्था का संगीत से कोई रिश्ता हो सकता है? अधिक विवरण के लिए कल इसी ब्लाग पर, ठीक इसी समय फिर मिलेंगे, अभी इजाजत दें। शेष शुभ....-इति आपकी 'शुभदा'

शनिवार, अप्रैल 25, 2009

गर्भावस्था में व्यायाम से स्वस्थ बच्चा

गर्भावस्था के दौरान जो महिलाएं नियमित व्यायाम करती हैं वो हमेशा स्वस्थ बच्चे को जन्म देती हैं। हाल ही में हुए एक सर्वे के दौरान यह बात सामने आई।कैनसास सिटी यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने एक अध्ययन के दौरान यह खुलासा किया कि गर्भावस्था में नियमित व्यायाम करने से गर्भ में पल रहा बच्चा भी स्वस्थ पैदा होता है। इतना ही नहीं इससे बच्चे के फेफड़े और तंत्रिका तंत्र भी मजबूत बनते हैं। इसके साथ ही गर्भ में पल रहे बच्चे को सांस लेने में भी ज्यादा दिक्कत नहीं होगी अगर मां स्वस्थ रहती है।
अनुसंधानकर्ता लिंडा कहती हैं कि व्यायाम गर्भावस्था के शुरुआती दिनों में ही शुरू कर देना चाहिए इससे बच्चे स्वस्थ और मजबूत होंगे उनका तंत्रिका तंत्र मजबूत होगा और उनके अचानक मरने के दुष्प्रभाव कम हो जाएंगे। यह शोध 20 से 35 वर्ष से ज्यादा उम्र की महिलाओं पर किया गया जिनमें से आधी महिलाओं ने जिन्होंने लगातार चलना, साइकिल चलाना और हफ्ते में तीन बार आधे घंटे के लिए दौडऩा जैसे व्यायाम किए जबकि बाकी की महिलाओं ने कुछ भी नहीं किया। परिणाम के तौर पर जिन महिलाओं ने नियमित व्यायाम किया उन्होंने बाकी महिलाओं की अपेक्षा स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया।
अति तो हर चीज की वर्जित है, जहां शोधकर्ताओं ने नियमित व्यायाम पर जोर दिया है वहीं यह भी कहा है कि अत्यधिक व्यायाम करने से काफी समस्या आ सकती है। अधिक विवरण के लिए कल इसी ब्लाग पर, ठीक इसी समय फिर मिलेंगे, अभी इजाजत दें। शेष शुभ....
-इति आपकी 'शुभदा'

शुक्रवार, अप्रैल 24, 2009

जीवन भर नशे में रह सकता है आपका बच्चा

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के लिए शराब का एक पैग उनके गर्भ में पल रहे शिशु के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट के अनुसार शराब सेवन के कारण गर्भावस्था में भ्रूण के विकास पर हानिकारक प्रभाव डाल सकता है।ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन के शोधकर्ता विविनी नाथसन ने बताया कि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को शराब का सेवन कतई नहीं करना चाहिए क्योंकि शराब का एक या दो पैग लेने पर भी भ्रूण के केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का विकास अवरूद्ध हो सकता है।शोध रिपोर्ट के अनुसार गर्भावस्था के शुरुआती तीन महीनों में भी शराब का सेवन भ्रूण के विकास को अवरूद्ध करने की क्षमता रखता है। इस रिपोर्ट को वैज्ञानिको ने करीब 500 महिलाओं पर अनुसंधान कर तैयार किया है।

शराब तो खैर खराब है ही, बुरी-बुरी बातों को दूर रखकर अगर हम कुछ अच्छी बातों पर चर्चा करें तो और बेहतर होगा। मसलन व्यायाम, पता चला है कि गर्भावस्था के दौरान जो महिलाएं नियमित व्यायाम करती हैं वो हमेशा स्वस्थ बच्चे को जन्म देती हैं। अधिक विवरण के लिए कल इसी ब्लाग पर, ठीक इसी समय फिर मिलेंग और चर्चा करेंगे कि क्या जब पैर भारी हो तब व्यायाम करना चाहिए ? अभी इजाजत दें। शेष शुभ -इति, आपकी 'शुभदा'

गुरुवार, अप्रैल 23, 2009

गर्भावस्था में धूम्रपान दोधारी तलवार

गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान करने वाली महिलाओं के नवजात शिशुओं की 'सडन इंफैंट डेथ सिंड्रोम (सिड्स) यानी अचानक शिशु की मौत की आशंका बहुत बढ़ जाती है। कैलगरी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अपनी तरह के इस पहले शोध में पाया गया कि जिन बच्चों की मांओं ने गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान किया था, उनमें श्वसन संबंधी समस्याएं होती हैं।

विश्वविद्यालय में शिशु विभाग के प्रोफेसर शबीह हसन ने बताया, 'गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान दोधारी तलवार की तरह है। इससे न केवल महिलाओं के समय पूर्व प्रसव की आशंका रहती है बल्कि इससे बच्चों के सिड्स का शिकार होने की आशंका भी बढ़ जाती है। हसन ने कहा कि समय पूर्व पैदा हुए बच्चों में श्वसन संबंधी समस्या की आशंका होती है। इससे पहले किए गए अध्ययनों से पता चला था कि कम ऑक्सीजन और अधिक कार्बन डॉयआक्साइड के मिश्रण से सिड्स का खतरा होता है, लेकिन अब तक धूम्रपान और सिड्स के संबंधों पर कोई अध्ययन नहीं हो पाया था।

धूम्रपान के अलावा गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के लिए शराब का एक पैग भी उनके गर्भ में पल रहे शिशु के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। अधिक विवरण के लिए कल इसी ब्लाग पर, ठीक इसी समय आपसे फिर मिलेंगे, अभी इजाजत दें।

-इति आपकी 'शुभदा'

सोमवार, अप्रैल 06, 2009

बहुत कुछ 'अन-डू' नहीं हो पाता

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी के बारे में कोई भी ऊल-जुलूल बोल या लिख देने से कुछ क्षणों के लिए वक्ता या लेखक जरूर चर्चा में आ सकता है या अपने लिखे पर कुछ अतिरिक्त टिप्पणियां पा सकता है, लेकिन वह स्वयं भी जानता है कि उसने ऐसा कर कोई महान कार्य नहीं किया है। मेरा तो मानना है कि अंत: ऐसे में पछतावा ही साथ रह जाता है। अभी आज ही एक बोध कथा पढ़ी, संक्षेप में प्रस्तुत है।

बिना विचारे बोलने वाली एक बातूनी महिला ने एक व्यक्ति को कुर्सी पर बैठ कर बगीचे में पानी डालते देखा। अपनी मंडली में जाकर खूब हंसी उड़ाई। कहा-'आलसीपन की सीमा तो देखो, बागवानी भी कुर्सी पर आराम फरमाते हुए हो रही थी। अगले दिन जब वहीं से गुजरना हुआ तो महिला ने इस बार कुर्सी के पास रखी दो बैसाखियां भी देखी। अपने कल के प्रचार पर उसे बहुत अफसोस हुआ। आदत से मजबूर अगली बार महिला ने एक अन्य पडोसन के बारे में सुनी-सुनाई बातों के आधार पर अपनी ओर से नमक-मिर्च लगा कर एक रोचक दास्तान प्रचारित की। प्रभावित महिला को भी पता चला, वह मानसिक आघात से बीमार हो गई। कुछ दिनों बाद सभी को पता चला की गलत बात प्रचारित हो गई। बातूनी महिला की बड़ी फजीयत हुई। वह लोकप्रियता की भूखी थी पर दिल से उतनी बुरी नहीं थी।


इस बार वह एक संत के पास गई और हालात में सुधार का उपाय जानना चाहा। संत ने सुझाया कि वह अपने घर से कोई पुरानी कॉपी ले और उसे फाड़ कर उसके पन्ने बाजार के रास्ते पर दूर तक डाल कर आए तो उसे कुछ बताया जाए। महिला ने वैसा ही किया और लौट कर संत के पास आई। इस बार संत ने कहा- 'अब जरा जाकर उन पन्नों को समेट कर ले आओं देखना हर पन्ने पर तुम्हारी समस्या का समाधान लिखा होगा।' महिला हैरान तो हुई, लेकिन संत की बात मान कर पन्ने समेटने निकल पड़ी। पूरे रास्ते सावधानी से तलाशा फिर भी दो-चार पन्ने ही जुटा पाई। बाकी को हवाएं उड़ाकर न जाने कहां से कहां ले गई थी। उसे पन्ने उड़ाने और फैलाने में कोई खास वक्त नहीं लगा था, लेकिन काफी वक्त लगाने के बाद भी उन्हें पूरी तरह समेटना और नुकसान की भरपाई करना असंभव हो गया। माजरा समझने के बाद उसे संत के पास वापस जाने की जरूरत नहीं रह गई थी।


सबक: किसी के बारे में कोई टीका-टिप्पणी करने, कोई फैसला सुनाने या कोई खबर फैलाने से पहले हजार बार सोच लेना चाहिए। अपने एक वाक्य से किसी की पूरी जिन्दगी तबाह हो सकती है। गपबाजी और अफवाहों से हुए नुकसान को पूरी तरह से 'अन-डू' नहीं किया जा सकता।