शुक्रवार, नवंबर 28, 2008
ओह! मुंबई
बुधवार, नवंबर 26, 2008
क्या है, एम्. आर.
मंगलवार, नवंबर 25, 2008
क्या है मानसिक विमंदिता ?
सोमवार, नवंबर 24, 2008
वोट डालनें का अधिकार मत छोड़ना
आजादी यही तो है। यहां हम अपनी मर्जी का हुक्मरान चुनते है जो हमारी मर्जी से काम करता है। अगर वह हमारे लिए काम नहीं करेगा तो हम उसे बदल देंगे। इसी पोलिंग बूथ के रास्ते हमें मंजिल मिलेगी। हमें विमंदित बच्चों के विकास व समृद्धि की जरूरत है और यह सब हासिल करने का यह सबसे बढि़या तरीका है। अब सभी लोगों ने इस सच्चाई को समझ लिया है इसलिए वे अपने मत का प्रयोग करने के लिए वोट डालते हैं। अपने मताधिकार का प्रयोग करने से जी चुराने वालों को अपनी ताकत जानने की जरूरत है। वोट देना हमारा फर्ज है। इससे हमारी तकदीर बदलती है।
यही एक दिन होता है जिस दिन हम बादशाह होते है और अगले कुछ सालों तक किसी और को बादशाहत देते है ताकि वह हमारे लिए काम करे। अच्छी हुकूमत होगी तो ये दिक्कतें दूर हो जाएंगी।
अगर हम वोट डालने नहीं आएंगे तो फिर वही लोग हुकुमत करेंगे जो हमारी पसंद के नहीं होंगे और जिन्हे हमारी कोई चिंता नहीं होगी। आपने कभी वोट डाला है? अगर नहीं तो फिर इस बार आप वोट जरुर डालो, अपने आप पता चल जाएगा कि अपनी ताकत का सही इस्तेमाल करना कैसा लगता है।
गुरुवार, नवंबर 20, 2008
विमंदिता से बचाता है स्तनपान
मां का दूध माने ..... best mental health
यदि आप अपने बच्चे को स्तनपान कराने से कतराती है, तो एक बार गंभीरता से विचार कीजिए.. क्या आप यह नहीं चाहतीं कि आपका शिशु हमेशा मानसिक विकलांगता से दूर और स्वस्थ रहे।
पिछले दिनों यूरोपीय मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार जो महिलाएं अपने बच्चे को रोजाना अधिक समय तक स्तनपान कराती है, वे एक तरह से उसके रोगों से लड़ने की क्षमता को मजबूत कर रही होती है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि शिशु जब स्तनपान करते है, तो उन्हे बोतल से दूध पीने के मुकाबले अधिक मेहनत पड़ती है और उन्हे अधिक मात्रा में ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। शिशुओं की यह मेहनत बेकार नहीं जाती। कारण वे जैसे-जैसे बड़े होते है, उनके फेफड़े ज्यादा मजबूत होते जाते है। दिमाग में आक्सीजन की आवक बढ़ जाती है। जो मानसिक स्वास्थ से लिए जरुरी है।
इस संदर्भ में अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का भी कहना है कि जो शिशु लंबे समय तक दूध पीते रहते है, उनका वजन भी सही रहता है और उनके शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक मजबूत होती है।
अमेरिकी वैज्ञानिकों का कहना है कि हमने अपने शोध में लगभग एक हजार से अधिक बच्चों को शामिल किया। इन बच्चों का एक नियमित अंतराल पर चेकअप किया जाता रहा। प्रथम चार माह में यह पाया गया कि जिन बच्चों ने चार माह से अधिक समय तक लगातार स्तनपान किया था, वे ऐसा न करने वाले शिशुओं की तुलना में अधिक स्वस्थ थे।
इस संदर्भ में एक और खास बात देखने को मिली कि उन माताओं के बच्चे भी काफी स्वस्थ थे, जो माताएं अस्थमा और एलर्जी से भी पीड़ित थीं। अमेरिकी वैज्ञानिकों की इस बात पर जापान के शोधकर्ताओं ने भी मुहर लगा दी है। उनका कहना है कि शिशुओं द्वारा स्तनपान करना एक प्रकार की एक्सरसाइज है। जाहिर है छोटे बच्चे किसी अन्य प्रकार की कसरत तो कर नहीं सकते, इसलिए ये कसरत उनके काफी काम आती है।
यूके के हेल्थ डिपार्टमेंट की एक महिला अधिकारी का कहना है कि हम न केवल सरकारी, बल्कि गैरसरकारी अस्पतालों को अलिखित रूप से यह आदेश दे दिया है कि अस्पताल आने वाली महिलाओं को इस बात के लिए प्रेरित किया जाए कि वे अपने शिशुओं को कम से कम छह माह तक स्तनपान अवश्य कराएं। कुछ स्थितियों को छोड़कर किसी भी कीमत स्तनपान की अवधि चार माह से कम नहीं होनी चाहिए।
गौरतलब है कि इस संदर्भ में महिलाओं को जागरूक करने के लिए दुनिया के कई देशों में मां बनने वाली महिलाओं को बाकायदा प्रशिक्षण दिया जाता है कि उन्हे अपने नन्हे-मुन्ने को किस प्रकार से दूध पिलाना है।
शुक्रवार, नवंबर 14, 2008
नया कलाकार
सोमवार, नवंबर 10, 2008
बुलंद हौंसलों से होती है हर मुश्किल आसान
'संभव-2008'
कड़ी मेहनत, लगन व बुलंद हौसले के साथ कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। यहां तक कि शारीरिक व मानसिक खामियां भी मंजिल पाने से रोक नहीं पातीं। रविवार को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सभागार में एसोसिएशन फॉर लर्निग आर्ट्स एंड नोरमेटिव एक्शन द्वारा आयोजित 'संभव-2008' नामक सेमिनार में यह बात एक बार फिर सामने आई। सेमिनार में देशभर के समाजसेवियों, प्रोफेसरों व विद्वानों के बीच सार्क से जुड़े पांच सदस्य देशों के वरिष्ठ वक्ताओं ने विकलांगता पर विचार रखे।
विचार :
श्रीलंका के सुमेरा फाउंडेशन की अध्यक्ष सुनेत्रा भंडारनायके ने कहा कि समाज में विकलांगता को आज भी अभिशाप माना जाता है। इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है।
अन्य वक्ता के तौर पर विकलांग बच्चों का मनोबल बढ़ाने के लिए तत्पर गुरु सैयद सलाउद्दीन पाशा ने कहा कि विकलांगता शरीर से ज्यादा मानसिकता से जुड़ी दशा है। विश्वास और आत्मबल की औषधि से इस दशा में सुधार किया जा सकता है। नृत्य के माध्यम से इलाज करने वाली बेंगलुरु से आई नृत्य निर्देशक त्रिपुरा कश्यप ने कहा कि नृत्य की विभिन्न विधाओं से शारीरिक व मानसिक रूप से अक्षम बच्चों के मन व शरीर के बीच तारतम्य पैदा होता है। विभिन्न अंगों में गति उत्पन्न होती है व मांसपेशियों का तनाव कम होता है।
नेपाल के नेशनल फेडरेशन फोर डिसएबल की प्रतिनिधि शिल्पा थापा ने नेपाल में विकलांगों की दशा का तथ्यात्मक ब्योरा रखते हुए न केवल वहां के मौजूद कानूनों की चर्चा की, बल्कि उन तरीकों को बताया जिनके द्वारा वे ऐसे लोगों व समूहों की मदद कर रही हैं। इस अवसर पर चर्चित कानूनविद् व मानव अधिकार कार्यकर्ता इंदिरा जयसिंह ने देश के संविधान में विकलांगों को मिले समान अधिकारों का विस्तार से जिक्र किया और अपने कानूनी अनुभवों का हवाला दिया।
सेमिनार के समापन अवसर पर भारत समेत भूटान, नेपाल, श्रीलंका व बांग्लादेश से आए विकलांग बच्चों ने अपने हुनर का बेहतरीन प्रदर्शन कर ऐसा समां बांधा कि लोग भावविभोर हो गए और तालियों की गड़गड़ाहट से उनका मनोबल बढ़ाया।
रविवार, नवंबर 09, 2008
ब्रेक के बाद.... फ़िर हाजिर हैं !
दरअसल कोई अच्छा काम करना, कोई आसान काम नहीं होता।
हो सकता है आप इससे सहमत नहीं हों, लेकिन मेरे निजी अनुभव.....
खैर! इसे फ़िर शुरू करते हुए खुशी हो रही है।
हाय - हेल्लो के बाद इस बार भी बस हाजिरी लगा दें, अगली बात बिना किसी भूमिका के होगी ।
बस एक ब्रेक के बाद, छोटा सा ब्रेक।
शेष शुभ!
इति "शुभदा"