मानसिक विकलांग बेटे की परवरिश में गुजार दी उम्र
‘मां’ वो शब्द है, जिसका कोई मोल नहीं। मां से ही नि:स्वार्थ प्रेम और त्याग मिलता है। यहां की एक विधवा मां अपने मानसिक विकलांग बच्चे को बेहतर जीवन देने के लिए पिछले 18 वर्ष से अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया। मानसिक विकलांग बेटे के प्यार में कोई कमी न रहे, इसलिए उसने दूसरी संतान को भी जन्म नहीं दिया। उसका पूरा दिन अपने बेटे की सेवा में ही गुजर जाता है।
� हाथीखाना मोहल्ला वार्ड संख्या सात निवासी 42 वर्षीय रीता का विवाह 24 फरवरी 1992 को पत्रकार विनोद सक्सेना से हुआ था। जिसके बाद 14 अगस्त 1997 को पहली संतान के रूप में राशु सक्सेना ने जन्म लिया। राशु जन्म से ही सैरीब्रल पालसी रोग से ग्रसित है। इस कारण वह मानसिक रूप से कमजोर है और न ही बैठ सकता। रीता ने अपने मानसिक विकलांग बेटे राशु की परवरिश में कोई कमी नहीं की। रीता ने बताया कि बेटे को सैरीब्रल रोग से छुटकारा दिलाने के लिए उन्होंने बरेली के रवि खन्ना के साथ ही दिल्ली के एम्स हॉस्पिटल तक इलाज कराया। लेकिन, राशु ठीक नहीं हो सका। 13 वर्ष तक निरंतर इलाज कराने के बाद डाक्टरों ने एक्सरसाइज कराते रहने की सलाह देते हुए इलाज बंद कर दिया।
�ठीक एक साल पहले बीती 28 अप्रैल 2014 को उनके पति विनोद सक्सेना का निधन हो गया। जिसके बाद से वह अकेले ही अपने बेटे की परवरिश में लगी हैं। रीता के अनुसार बेटे के कारण वे पति की मौत के बाद कोई नौकरी भी नहीं कर पाई। उनके बरेली निवासी पिता कल्लूमल घर खर्च के लिए हर महीने रुपए दे जाते हैं, जिससे गुजर-बसर हो रहा है। रीता ने बताया कि राशु की परवरिश में कमी न हो, इसके लिए उन्होंने दूसरी संतान को जन्म ही नहीं दिया और आज वह अकेले ही अपने बेटे के पालन-पोषण में लगी हैं। बेटे के बैठ तक नहीं पाने के कारण उसे खिलाने-पिलाने और दैनिक क्रियाएं कराने तक सबकुछ रीता को ही करना पड़ता है। इसलिए वे अधिकतर शादी समारोह या अन्य कार्यक्रमों में जाने से बचती हैं। जब अधिक मजबूरी आ जाती है, तो बेटे को अपने साथ लेकर जाती हैं।
क्या हम राशु या उसकी माँ रीता की कोई मदद कर सकते है ?
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