बुधवार, दिसंबर 03, 2008

डिसेबिलिटी का दर्द कोई और क्यों नहीं समझ पाता?

इस क्रूर नियति को भी जीता जा सकता है!

मन में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो कोई भी बाधा रास्ते का रोड़ा नही बन सकती फ़िर भले ही निः शक्तता ही क्यों न हो। यदि हौसले बुल्लंद हों इस क्रूर नियति को भी जीता जा सकता है। देश-दुनिंया ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने निः शक्तता से हार नहीं मानी और अपने सपने को पूरा किया। ऐसी बहुत सी अच्छी - अच्छी बातें आज अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस के दिन कहने, सुनने और हौंसला अफजाई के लिए अच्छी ही होतीं हैं। लेकिन निः शक्तता का वास्तविक दर्द कोई निः शक्त या उसके परिजन से बेहतर कोई और क्यों नहीं समझ पाता?

विकास के तमाम बड़े बड़े दावों के विपरीत कड़वा सच यह है कि आज भी दुनिया की दस फीसदी आबादी किसी न किसी विकलांगता की शिकार है। दूसरे ग्रहों पर बसने का सपना देखने वाले मानव के लिए इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं हो सकती कि लगभग 65 करोड़ विकलांग आज भी अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल की तरह इस साल भी आज अंतरराष्ट्रीय विकलांग(?) दिवस मनाया जा रहा है और इस साल इस दिवस का मुख्य विषय याने थीम विकलांग व्यक्तियों के अधिकार उनकी गरिमा और सभी के लिए न्याय है। यह विषय सभी के लिए समान मानवाधिकार और विकलांगों की समाज में सहभागिता के उद्देश्य पर आधारित है। पूरे विश्व की आबादी में से 65 करोड़ से अधिक लोग किसी न किसी तरह की विकलांगता के साथ जीते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार विकसित देशों में विकलांगों की संख्या कम होने और वहां पर उन्हें सभी प्रकार के अधिकार और आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध होने के कारण स्थिति काफी अच्छी है। लेकिन विकासशील देशों में विकलांग अपने जीवनयापन और अधिकारों के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन उन्हें जितनी सफलता मिलनी चाहिए नहीं मिल पाई है।
विकलांगों तथा उनके कल्याण के लिए काम करने वाले संगठन नेशनल सेंटर फार प्रमोशन आफ एम्प्लायमेंट फार डिस्एबल्ड पीपुल [एनसीपीईडीपी] के प्रमुख जावेद आबिदी का मानना कि शिक्षा और रोजगार तो मुख्य मुद्दे हैं ही, लेकिन ढांचागत सुविधाओं का अभाव सबसे बड़ी समस्या है।
उनका कहना है कि सार्वजनिक इमारतों, परिवहन प्रणाली, स्कूल, कालेज आदि के अंदर जाने के लिए अनुकूल सुविधाओं का न होना सबसे बड़ी समस्या है। स्वयं व्हील चेयर पर चलते वाले आबिदी का कहना है कि अंदर जाने की सुविधा होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक विकलांग व्यक्ति को अपने घर से बाहर आने की कालेज या दफ्तर जाने के लिए बस पकड़ने की शापिंग काप्लेक्स जाने की या अन्य सार्वजनिक इमारतों में प्रवेश की वैसी ही सुविधा होनी चाहिए जैसी अन्य लोगों के लिए होती है।
इस दिवस का उद्देश्य विकलांगता से जुड़े मुद्दों के बारे में समझ को बढ़ावा देना और विकलांगों के अधिकारों तथा उनकी खुशहाली के लिए उनके पक्ष में समर्थन को बल देना है।

3 टिप्‍पणियां:

  1. aapne ek aisa mudda uthaya hai shubdaa ji jispar kisee kee nazar nahin jaati...magar maanveeyataa se gaharaa sarokaar hai iska.... aap agarcche inke sahyog hetu kuch bhi kar rahi ho to aapko saadhuvaad....aur hamaari aur se aapki safaltaa kee shubhkaamnaayen...!!

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  2. thanks Shubhda Ji for this post, and thanks for analysing the problems of handicapped people...they are ready to many things, if u give a little support.

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