बुधवार, मार्च 31, 2010

केन्द्र बोले पेंशन, राज्य देवे टेंशन

आहत करे राहत

विमंदित और बधिरों को विकलांग मानने या न मानने पर विवाद

राजस्थान में मानसिक विमंदित और बधिरों को विकलांग मानने या न मानने पर विवाद हो गया है। विवाद के चलते जहां करीब 30 हजार लोगों की पेंशन रोक दी गई है, वहीं करीब ढाई लाख लोगों के विकलांगता के प्रमाण पत्रों के बेकार हो जाने का खतरा हो गया है।

सरकार ने नि:शक्तजनों की पेंन्शन का दायरा बढ़ाकर दृष्टिहीनों और चलन नि:शक्ततों के साथ अन्य नि:शक्तजनों को भी इसमें शामिल तो कर लिया, लेकिन उम्र का ऐसा भेद कर दिया कि उनके लिए नई परेशानी खड़ी हो गई। यही नहीं, उनके लिए बीपीएल होने की अनिवार्यता भी जोड़ दी है जिससे सैकड़ों लोगों को पेन्शन से वंचित ही रहना पडेगा।

केन्द्रीय नि:शक्तजन अधिनियम-1995 में मानसिक विमंदितों और बधिरों को नि:शक्तजन की श्रेणी में रखा गया है, वहीं राज्य के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ने इन दोनो श्रेणियों को गैर नि:शक्त कहते हुए सरकारी फायदे देने से इन्कार कर दिया है। विभाग की लेखा शाखा ने उन सभी मानसिक विमंदितों व श्रवण बाधितों की करीब एक साल पूर्व इस आधार पर पेंशन रोक दी कि ये नियमानुसार सहीं नहीं है और ये दोनो श्रेणियां इसकी हकदार नहीं है।

विवाद होने पर पिछले साल राजस्थान सरकार ने नि:शक्तों से सम्बन्धित मसलों पर उच्च स्तरीय कमेटी गठित की है। कमेटी के विभाग के प्रमुख शासन सचिव के साथ ही चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, मेडिकल शिक्षा और शिक्षा विभाग के उच्चाधिकारियों को शामिल किया गया है। अब तक यह कमेटी यह स्पष्ट नहीं कर सकी है कि दोनो श्रेणियां विकलांगता की श्रेणी में आते है या नहीं? वहीं इस मुद्दे को लेकर नि:शक्तजन क्षेत्र में कार्यरत स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि कई बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मिल चुके है, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई है।

जिस कानून के तहत नि:शक्तजनों को पेन्शन का सहारा दिया जा रहा है, उसका नाम तो नि:शक्तजन समान अवसर अधिकार संरक्षण एवं पूर्ण भागीदारी है, लेकिन असलियम में हो कुछ और ही रहा है। 15 जनवरी से पहले तक राज्य में केवल दृष्टिहीन व चलन नि:शक्तों को ही पेंन्शन मिल रही थी। इसके बाद से मानसिक विमंदित, बधिर, कमजोर दृष्टि, कुष्ठ रोग मुक्त नि:शक्तों व मानसिक रूग्णता से पीडि़तों को भी पेन्शन का लाभ दे दिया गया है। लेकिन शर्त जोड़ दी कि पेंशन के लिए उनका 18 वर्ष की आयु पार होने के साथ ही बीपीएल होना अनिवार्य कर दिया गया। जबकि दूष्टिहीन व चलन नि:शक्तों के मामले में न्यूनतम उम्र 8 वर्ष है उम्र के साथ ही बीपीएल होने की अनिवार्यता कर दी गई, जिससे सैकड़ों नि:शक्तजन आवेदन से ही वंचित हो गए है ऐसे में नि:शक्तों का कहना है कि नई बीपीएल सूची बनने में अभी वक्त लगेगा, तब तक ये क्या बिना पेन्शन के ही बैठै रहेंगे?

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