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रविवार, अक्टूबर 07, 2012

करोड़ों खर्च, लेकिन एक भी स्कूल नहीं


विमंदित बच्चों के अभिभावक मायूस 

शुभदा नेटवर्क ,जयपुर। घर जाओ तो इठलाती सी वह आपसे नमस्कार कर लेगी...। तपाक से अपना नाम बता देगी...। कहो तो भाग कर पापा को बुला लाएगी...। करीब 16 साल की आशा को इन सब बातों की खूब समझ है। बस कमी है तो स्कूली शिक्षा की, जो इस उम्र में भी अब तक उसे नहीं मिल पाई। दरअसल, आशा विमंदित है और यही कारण है कि उसे स्कूलों ने दाखिला नहीं दिया। 
पिता ओमप्रकाश दामोणिया शिक्षा संकुल में चलने वाले एक सरकारी स्कूल के कर्मचारी हैं। वह कहते हैं कि कई स्कूलों में गए, लेकिन मायूसी ही हाथ लगी। ये समस्या सिर्फ ओमप्रकाश की नहीं बल्कि ऐसे कई अभिभावकों की है जिनके घरों में विमंदित बच्चे हैं। जिन्हें देखकर अन्दाजा लगाया जा सकता है कि ऐसे बच्चों के मामले में शिक्षा का अघिकार कानून (आरटीई), सर्व शिक्षा अभियान और विभागीय आदेश सब बेकार ही हैं।
प्रवेश को बाध्य
आरटीई के नियमों में नि:शक्त बच्चों को भी असुविधा ग्रस्त माना गया है। यानी स्कूल उन्हें कानूनन नि:शुल्क प्रवेश देने को बाध्य हैं। यहां तक कि प्रमुख सचिव (शिक्षा) ने भी आदेश दे रखा है कि ऐसे बच्चों के आने पर हर हाल में उन्हें प्रवेश दें। चाहे वे सरकारी स्कूल हों या निजी।
पूरे राज्य में एक स्कूल नहीं
प्रदेश में सरकारी क्षेत्र में नि:शक्त विद्यार्थियों के लिए विभिन्न श्रेणियों के सात विशेष विद्यालय खुले हैं। यह अंधता, मूक बघिर, दृष्ट्रि बाघित एवं नि:शक्तता की अन्य श्रेणियों वाले बच्चों के लिए ही हैं, लेकिन मानसिक विमंदितों के लिए एक भी स्कूल नहीं है।