शुक्रवार, मार्च 27, 2009

ऐसे बढ़ाएं याददाश्त..


कुछ दोस्तों ने पूछा है- क्या शुभदा के पास केवल मानसिक विमंदितों के लिए ही टिप हैं? ऐसा नहीं, आज पेश है, सामान्य लोगों के मानसिक स्वास्थ्य हेतु याददाश्त बढ़ाने के लिए कुछ टिप्स। यदि इनका पालन किया जाए तो दिमाग पहले से ज्यादा तेज हो जाएगा।

रोजमर्रा की जिंदगी में तकनीक के बढ़ते दखल ने हमें बेहद आरामतलब बना दिया है। मोबाइल फोन, इंटरनेट से जिंदगी आसान तो हुई है लेकिन इसके नुकसान भी हैं। कोई सूचना या रहस्य यदि एक क्लिक की दूरी पर हो, तो कोई क्यों अपने दिमाग को कष्ट देना चाहेगा। लेकिन आगे चलकर ये आदतें विशेष रूप से मस्तिष्क की याद रखने की क्षमता पर घातक असर डाल सकती हैं।

1। करें ब्रेन एक्सरसाइज दिमाग का जितना ज्यादा इस्तेमाल करेंगे वह उतना ही तेज और सक्षम बनेगा। ब्रेन एक्सरसाइज इसी फंडे पर काम करती है। रोज का सामान्य काम जरा सा हटके किया जाए तो आपके दिमाग का हर वह हिस्सा सक्रिय होने लगेगा जिसका पहले इस्तेमाल ही नहीं किया जा रहा था। आंखें बंद करके कपड़े बदलना, कोई नया विषय या नया खेल सीखना। बिजली का स्विच आन करने जैसे काम के लिए सीधे हाथ के बजाय उलटे हाथ का प्रयोग करना जैसे तरीके अपनाकर दिमाग की बंद खिड़कियों को खोल सकते हैं।

2। आठ सेकेंड का ध्यान कोई बात तभी लंबे समय तक याद रहती है जब उस पर ध्यान दिया जाए। जो भी याद रखना है उसे गौर से पढ़े और आगे बढऩे से पहले आठ सेकेंड तक ध्यान केंद्रित करें। फिर देखिए कोई भी चीज कैसे याद नहीं रहती।

३। सीखने का अपना तरीकापहचाने कोई भी चीज याद रखने या सीखने का हर किसी का अपना तरीका होता है। कुछ लोग बेहतर विजुअल लर्नर होते हैं। यह वे लोग होते हैं जो किसी चीज को देखकर या पढ़कर सीखते हैं। वहीं कुछ लोग बेहतर आडियो लर्नर होते हैं जो सुनकर सीखते हैं। आपके लिए कौन सा तरीका सुविधाजनक है इसे पहचाने और याद रखने के लिए उसी का इस्तेमाल करें।

4. करें इंद्रियों का ज्यादा इस्तेमाल चाहे आप विजुअल लर्नर ही क्यों न हो याद रखने के लिए बोल कर पढ़ें। कविता की तरह याद करने की कोशिश करेंगे तो और भी अच्छा होगा। जानकारी को किसी रंग, सुगंध, स्वाद से जोड़कर याद रखने की आदत डालें।

5. नई जानकारी को किसी पुरानी जानकारी से जोड़कर याद रखने का प्रयास करें।

6. व्यवस्थित तरीके से करे याद किसी भी जानकारी को शब्दों और चित्र के माध्यम से याद रखने का प्रयास करें। चार्ट, संक्षिप्त रूप में याद रखना भी मददगार साबित होगा।

ये आदतें भी होंगी मददगार -कुछ अच्छी आदतें डालकर भी दिमाग को तेज रखा जा सकता है।

1। रोज व्यायाम करें नियमित व्यायाम से मस्तिष्क को ज्यादा आक्सीजन मिलती है जिससे याददाश्त कम होने का खतरा भी घट जाता है। साथ ही कुछ ऐसे रासायन स्रावित होते हैं जो दिमाग की कोशिकाओं को नष्ट होने से बचाएंगे।

2. तनाव से बचें तनाव दिमाग को एकाग्रचित नहीं होने देता। ज्यादा तनाव से हार्मोन कोर्टिसाल दिमाग के हिप्पोकैंपस को गंभीर नुकसान पहुंचाता है।

3. पूरी नींद लें अच्छी नींद लेने से दिमाग तरोताजा रहता है। नींद पूरी नहीं हो पाने से दिनभर थकावट रहती है और किसी काम में ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो जाता है।

4. धूम्रपान न करें सिगरेट पीने से मस्तिष्क तक आक्सीजन पहुंचाने वाली धमनियां सिकुडऩे लगती है जिससे दिमाग कमजोर होने लगता है।

क्या खाएं -फल, सब्जियों का पर्याप्त मात्रा में सेवन सेहत के साथ दिमाग के लिए भी काफी लाभकारी साबित होता है। विटामिन बी, बी 12, बी 6 फोलिक एसिड युक्त खाद्य पदार्थ जैसे पालक, हरी सब्जियां, स्ट्राबैरी, तरबूज-खरबूज जैसे रसीले फल, सोयाबीन से याददाश्त तेज होती है। ये नसों को क्षति पहुंचाने वाले होमोसिसटीन को नष्ट करते हैं। लाल रक्त कणिकाएं बनाने में मदद करते हैं जो मस्तिष्क तक आक्सीजन पहुंचाती हैं। टमाटर, ग्रीन टी, ब्रोकली और शकरकंद में विटामिन ई, सी और एंटीआक्सीडेंट पाए जाते हैं। ये शरीर और दिमाग में आक्सीजन का प्रवाह बढ़ाते हैं जिससे दिमाग की सक्रियता बढ़ती है। मछली, अखरोट और बादाम खाने से भी दिमाग तेज होता है।

शुक्रवार, मार्च 20, 2009

शायद कुछ हो ?

बुद्धिजीवी ब्लॉग वालों कि मस्त-मस्त बातों में मंदबुधिता की बातें करके माहौल बिगड़ना कोई बुद्धिमानी की बात नहीं, फिर भी कुछ लोग तो है ही जिनके सामने अपनी बात रखी जा सकती है। बस इसी उम्मीद में बहुत दिनों से मन में दबा कर रखी ये बात शेयर करना चाहती हूँ। प्लीज बताइयेगा क्या ऐसा हो सकता है?

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किए गए विभिन्न अध्ययनों से यह स्पस्ट हो चुका है कि दुनियां में हर सौ लोगों के बीच तीन मानसिक विमंदित हैं। भारत में यह आंकड़ा 4 प्रतिशत तक माना जाता है। भारत में इन विमंदितों हेतु अनेक स्तरों पर शिक्षण, प्रशिक्षण और पुनर्वास के लिए कार्य किए जा रहे हैं। यह कार्य सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर संचालित हैं। विमंदितों की संख्या को देखते हुए यह कार्य और प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। यही कारण है कि सफलता और उपलब्धि का प्रतिशत संतोषजनक नहीं है। अगर यह माना जाए कि हम शत-प्रतिशत उपलब्धि पा सकते हैं, फिर भी हम इसे अपनी सफलता नहीं कह सकते, क्योंकि दूसरी ओर विमंदितों की संख्या अपनी निर्धारित दर से लगातार बढ़ रही है।

मेरी अवधारणा यह है कि जब हम मानसिक विकलांगता के अधिकांश कारणों से अवगत हैं तो क्यों न अपने संसाधनों और क्षमता का एक निश्चित भाग इसी के निवारण में लगाया जाए। अगर हम मानसिक विमंदिता की बरसों से स्थिर चली आ रही दर को कम कर सकें तो शिक्षण, प्रशिक्षण और पुनर्वास के लिए किए जा रहे कार्य का बोझ कम हो सकता है। यह भी संभव है कि एक दिन हम चेचक, मलेरिया और पोलियो की तरह इस समस्या पर भी पूरी तरह अंकुश लगाने में कामयाब हो जाएं और विमंदितों के पुनर्वास के कार्य की जरूरत ही न रहे।

उपयुक्त बातों को स्वीकार करते हुए समुदाय के सहयोग से गर्भवती महिलाओं की स्वास्थ्य और पोषण संबंधी बेहतर देखभाल, फिर सुरक्षित प्रसव और बाद में शिशु की सुरक्षा से यह आसानी से संभव है। आसानी से इसलिए क्यों कि इस क्षेत्र में सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र में अनेक कार्यक्रम पहले से संचालित है। आवश्यकता है, उसमें बेहतर तालमेल बैठाना और मानसिक विमंदिता के मसले को प्रमुखता से नजर में रखना। माता के गर्भ में आकर प्राणवान होने के तत्काल बाद से ही भ्रूण को बिना किसी लिंग भेदभाव के सुरक्षित रूप से जीवित रहने, विकास और सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिल जाता है। ऐसे में उनकी शारीरिक, मानसिक, संज्ञानात्मक, भावनात्मक और सामाजिक विकास की जरूरतों व अधिकारों के लिए यह सुरक्षा कार्यक्रम अपेक्षित है।

समाज में यह समझ विकसित होनी चाहिए कि बचपन से ही नहीं, गर्भकाल से सही विकास ही समूचे विकास का आधार है। गर्भकाल के जीवन का शुरूआती समय शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य ओर पोषण के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है, इस सुरक्षा कार्यक्रम का सर्वाधिक जोर इसी बात पर है। गर्भवती माता और उसकी कोख में पल रहा एक और जीवन कुपोषण, रुग्णता एवं इससे पैदा होने वाली विकलांगता और मृत्यु का शिकार हो जाते हैं। इस कार्यक्रम से उन्हें सुरक्षा प्रदान की जा सकती है। यह सुरक्षा कार्यक्रम गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों की स्वास्थ्य संबंधी बेहतर देखभाल और अंत में शिक्षा सेवाओं तक उनकी पहुंच बनाने का समन्वित नजरिया उपलब्ध करा सकता है। यह विशेष रूप से गरीब समुदाय की गर्भवती महिलाओं और बच्चों का स्वयं उन्हीं के वातावरण और अपने ही परिचित लोगों के बीच सर्वांगीण विकास का उपाय हो सकता है। इस कार्यक्रम के द्वारा कम आय वर्ग वाले साधन विहीन वर्ग तक सुविधाओं की उपलब्धता और समझ पहुंचाना प्रमुख लक्ष्य है।

मेरी मान्यता है कि प्रसव से पूर्व की बेहतर देखभाल व तैयारी, प्रसव के समय की सावधानियां व प्रसव के बाद की सुरक्षा से मानसिक विकलांगता की दर पर अंकुश लगाया जा सकता है।

बुधवार, मार्च 18, 2009

मंदबुद्धि बच्चों के शरीर में घातक यूरेनियम

उत्तर भारत के ज्यादातर मंदबुद्धि बच्चों के शरीर में घातक रेडियोएक्टिव तत्व यूरेनियम की मौजूदगी पाई गई है। यह चौंकाने वाली जानकारी जर्मनी की माइक्रो ट्रेस मिनरल लैबोरेटरी ने उत्तर भारत के मंदबुद्धि बच्चों के एक सर्वे के बाद जग जाहिर की है। इस जानकारी की सूचना भारत सरकार और राष्ट्रीय बाल अधिकार अधिकार संरक्षण आयोग को भेज दी गई है।

हालाकिं हमारे देश में यूरेनियम का प्रत्यक्ष रूप से इस्तेमाल नहीं होता है, लेकिन ईरान, इराक, और अफगानिस्तान के सैन्य संघर्ष में 'डिप्लेटेड यूरेनियम' का उपयोग किया जाता है। यही 'डिप्लेटेड यूरेनियम' हवा और पानी के जरिए पाकिस्तान से लगी देश की उत्तरी सीमा से भारत में प्रवेश कर रहा है।
यह भी उल्लेखनीय है कि भारत की पश्चिमी सीमा से राजस्थान की सैंकड़ों किलोमीटर सरहद पाकिस्तान से लगी है। और राजस्थान में अभी इस तरह का कोई सर्वे नहीं हुआ है। (शुभदा)

सोमवार, मार्च 16, 2009

ज्यादा पानी नहीं पीना

प्रसव के दौरान अधिक मात्रा में पानी पीना शरीर के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है और इससे सिरदर्द, उल्टी और मस्तिष्क में सूजन जैसी तकलीफें आ सकती हैं। दक्षिण पूर्व स्वीडन के ‘केलमर काउंटी’ अस्पताल में 287 गर्भवती महिलाओं पर किए गए एक अध्ययन के बाद शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। अध्ययन में पता चला है कि प्रसव के दौरान ज्यादा पानी पीने से रक्त में सोडियम की मात्रा कम हो जाती है और इससे मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ सकता .

वर्ष 2007 में जनवरी से जून के बीच अस्पताल में भर्ती 287 महिलाओं को प्रसव के दौरान इच्छानुसार पानी पीने की अनुमति दी गई थी। प्रसव पूर्व और प्रसव बाद रक्त के नमूनों से पता चला कि अत्यधिक पानी पीने वाली महिलाओं के रक्त में सोडियम की मात्रा कम देखी गई।‘कार्नोलिस्का इंस्टीट्यूट’ में शरीर और औषधि विज्ञान विभाग के विबेकी मोइन ने कहा कि प्रसव के दौरान अत्यधिक पानी पीने से महिलाओं के रक्त में सोडियम की मात्रा प्रभावित होती है, जिसका मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है।