रविवार, फ़रवरी 22, 2009

इक्यावन फीसदी प्रसव भगवान भरोसे

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक देश की कम से कम 51 प्रतिशत महिलाओं पर गर्भावस्था और प्रसव के दौरान पर्याप्त ध्यान नहीं रखा जाता। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 3 की अंतिम रिपोर्ट के मुताबिक केवल 49 प्रतिशत महिलाएं किसी स्वास्थ्यकर्मी की देख-रेख में बच्चे को जन्म देती हैं। यह सर्वे स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से कराया गया है।

सर्वे के मुताबिक 1999 की तुलना में स्वास्थ्यकर्मियों की उपस्थिति में प्रसव सम्पन्न कराने के प्रतिशत में सात प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। महिलाओं के प्रसव को लेकर ग्रामीण और शहरी इलाकों में काफी अंतर पाया गया है। जहां शहरी इलाकों में 75 प्रतिशत महिलाएं प्रसव के दौरान चिकित्साकर्मी की सहायता लेती है, वहीं ग्रामीण इलाकों में केवल 39 प्रतिशत महिलाएं ही चिकित्साकर्मियों की उपस्थिति में बच्चे को जन्म देती हैं। अस्पताल में बच्चा पैदा होने की दर में 1999 के 34 प्रतिशत की तुलना में सात प्रतिशत की वृद्घि हुई है। 2006 में अस्पतालों में जन्म लेने वाले बच्चों का प्रतिशत 41 था। लेकिन अभी भी अधिकतर महिलाएं अपने बच्चे को जन्म घर पर ही देती हैं। केवल एक-तिहाई महिलाएं प्रसव के दो दिन के भीतर जरूरी चीजें प्राप्त कर पाती हैं। सर्वेक्षण में यह भी पाया गया है कि भारत की गर्भवती महिलाओं की तीन-चौथाई से अधिक को कम से कम प्रसव से पहले कुछ जरूरी चीजें मिलती हैं, लेकिन इनमें से केवल आधी महिलाएं ही प्रसवपूर्व चिकित्सा केंद्र में तीन बार जाती हैं।

शुक्रवार, फ़रवरी 13, 2009

जच्चा-बच्चा दोनों के लिए खतरनाक एनीमिया

प्रकृति ने महिलाओं को कुछ इस तरह बनाया है कि वे प्रायः खून की कमी से जूझती हैं, खासकर वे महिलाएँ, जो माँ बनने के दौर में हैं। इससे महिलाओं की काम करने की क्षमता घट जाती है और वे जल्दी थक जाती हैं। रक्तक्षीणता रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी प्रभावित करती है। इस कारण वे रोगों से भी शीघ्र संक्रमित हो जाती हैं। एक जननी का स्वस्थ होना जरूरी है, क्योंकि उस पर एक नए जीवन को धरती पर लाने का जिम्मा है। रक्त प्रवाह हमारे शरीर की वह जीवनधारा है, जो सभी जरूरी पोषक पदार्थ लिए पूरे शरीर में चलती रहती है। यदि कोई स्त्री पहले ही आयरन की कमी झेल रही है तो उसका एनिमिया और अधिक हो जाएगा।

एनिमिया के बारे में थोड़ी जानकारी ले लेना आवश्यक है। हमारे रक्त की लाल रक्त कणिकाओं में एक प्रोटीन होता है, जिसे हिमोग्लोबीन कहते हैं। हिमोग्लोबीन ऑक्सीजन का सप्लायर है, जो फेफड़ों से ऑक्सीजन उठाता है और सारे शरीर में पहुँचाता है। हिमोग्लोबीन बनाने के लिए आयरन चाहिए। यदि आपके शरीर में आयरन कम है तो हिमोग्लोबीन भी कम होगा। यही स्थिति एनिमिया कहलाती है। यदि महिला गर्भवती हो तो इम्यून सिस्टम कमजोर होने की वजह से जच्चा-बच्चा दोनों के लिए खतरा पैदा हो सकता है। साल भर में एक औरत अपने कुल रक्त का 22 प्रतिशत खो देती है। ऐसे में जो औरतें अपनी खुराक में खून बनाने वाले पौष्टिक तत्वों को शामिल नहीं करतीं, उन्हें एनिमिया होने का अधिक खतरा रहता है। गौरतलब है कि भारत में पहले ही 80 प्रतिशत महिलाएँ एनिमिया की शिकार हैं। यह जनस्वास्थ्य संबंधी समस्या है, जो हर वर्ग में फैली है।

एक आम भारतीय शाकाहारी खुराक खून बनाने के लिए पर्याप्त पोषक पदार्थ नहीं दे पाती। कुछ पदार्थ होते हैं, जो आयरन को शरीर में अवशोषित होने से रोकते हैं- जैसे फाइटेट, जो कि साबुत गेहूँ के आटे व अन्य अनाजों में पाया जाता है या फिर कैफीन जो कॉफी, चाय, कोला में पाई जाती है। ये चीजें आयरन पर जम कर उसको शरीर में अवशोषित नहीं होने देतीं। जिन स्त्रियों में आयरन तथा अन्य पुष्टिकारी की कमी होती है, वे एनिमिया की शिकार बनती हैं। यह रक्त की असामान्य स्थिति है, जिसमें खून में लाल रक्त कणिकाओं की संख्या बहुत घट जाती है। आयरन प्राप्त करने का सबसे बढ़िया माध्यम वे खाद्य पदार्थ हैं, जिनमें न केवल खूब आयरन होता है, बल्कि जो आयरन को शरीर में अवशोषित होने में भी सहायता करते हैं। शरीर ज्यादा से ज्यादा आयरन को अवशोषित कर पाए, इसके लिए आपको ऐसी खुराक लेना होगी, जिसमेंविटामिन सी और और बी-12 पर्याप्त मात्रा में मौजूद हों। साथ में आयरनयुक्त खुराक लें। इसके लिए आपको संतुलित भोजन के अलावा ऐसे खाद्य या पेय पदार्थ लेने होंगे, जिसमें रक्त का निर्माण करने वाले सूक्ष्मरूप से पौष्टिक तत्वों के साथ हो। हों। ऐसी चीजों को आपपूरक आहार के तौर पर लें तभी आपको रक्त निर्माण करने वाली पौष्टिकता मिल पायेगी ।

एनीमिया के लक्षण

* चेहरा पीला पड़ जाना। * थकान महसूस होना। * व्यायाम के वक्त असामान्य तरीके से साँस की अवधि घट जाना। * दिल का तेजी से धड़कना। * हाथ-पाँव ठंडे हो जाना। * नाखूनों का नाजुक हो जाना। * सिरदर्द। * अक्सर एनिमिया के कोई लक्षण प्रकट नहीं भी होते।

सोमवार, फ़रवरी 02, 2009

पारम्परिक नमक भी प्राकृतिक आयोडीन से भरपूर !

गोवा की एक शोधकर्ता ने दावा किया है कि पारम्परिक रूप से उत्पादित नमक स्वास्थ्य के लिए अधिक फायदेमंद है।आयोडीन युक्त नमक को लेकर कई शोधकर्ता यह कहते रहे हैं कि प्राकृतिक रूप से उत्पादित नमक में आयोडीन समान मात्रा में नहीं पाया जाता है, लेकिन गोवा विश्वविद्यालय की सविता केरकर इससे असहमत हैं।सविता ने कहा, “मैं गोवा में पिछले तीन वर्षों से पारम्परिक रूप बनाए जा रहे नमक पर अध्ययन कर चुकी हूं।” मैंने राज्य में नमक के 150 नमक की खदानों से नमूनों का संग्रह कर प्रयोगशाला में इनका परीक्षण किया। पारम्परिक नमक भी समान रूप से प्राकृतिक आयोडीन से भरपूर होता है।”प्राकृतिक नमक स्वास्थ्य के लिए जरूरी खनिज तत्वों से भरपूर है जबकि शोधित नमक में इन तत्वों की मात्रा बहुत कम पाई जाती है।केरकर का अध्ययन गोवा में पारम्परिक रूप से उत्पादित नमक तक ही सीमित है, लेकिन उनका मानना है कि भारत के अन्य हिस्सों के प्राकृतिक नमक में भी यह स्वास्थ्यवर्धक तत्व मौजूद हैं। भारत प्रति वर्ष लगभग एक करोड़ टन नमक का उत्पादन करता है जिसमें गुजरात का सर्वाधिक योगदान है। अन्य प्रमुख नमक उत्पादक राज्यों में तमिलनाडु एवं राजस्थान शामिल हैं।

रविवार, फ़रवरी 01, 2009

एक दाना बदल सकता है आपकी जिंदगी

सुश्री सारदा लहांगीर की ओर से यह सुखद जानकारी मिली की उड़ीसा के कोरापुट जिले के एक छोटे से गांव पदमपुर में आदिवासी महिलाएं एक सराहनीय कार्य कर रही हैं। दरअसल यह अशिक्षित महिलाएं अपने आसपास के गांवों में जाकर आयोडीन नमक बेच रही हैं। भले ही यह आदिवासी महिलाएं अशिक्षित हैं, लेकिन स्वास्थ्य के प्रति इनकी जागरूकता देखने लायक है।
आयोडीन नमक को लेकर इन महिलाओं के द्वारा उठाए जा रहे इनके कदम सचमुच काबिले तारीफ हैं।काफी दिनों तक इस इलाके के लोगों लिए आयोडीन नमक कोई महत्व नहीं रखता था, लेकिन जब आयोडीन के महत्व को लेकर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया, तब जाकर इन आदिवासी महिलाओं को आयोडीन के महत्व का पता चला। गांव की स्वयं सहायता समूह की एक बैठक में इन महिलाओं को जानकारी दी। इनको बताया गया कि माताओं के लिए आयोडीन नमक कितना आवश्यक है।गांव की 50 वर्षीया आदिवासी महिला पार्वती नायक का बेटा मानसिक रूप से विमंदित है। उसे इस बैठक के बाद पता चला कि आयोडीन नमक कितना आवश्यक है। इसके बाद से नायक ने इस नमक के बारे में घर-घर जाकर जानकारी दी। वह बताती है कि आयोडीन नमक का एक दाना आपकी जिंदगी बदल सकता है।उसने आगे बताया कि अगर उसे यह पहले पता होता, तो आज उसका बेटा मानसिक रूप से अस्वस्थ नहीं होता। पार्वती एक अभियान के तौर पर यह काम कर रही है। गांव की स्वयं सहायता समूह की यह आदिवासी महिलाएं अब घर-घर जाकर लोगों को आयोडीन नमक उपलब्ध करा रही हैं।