शुक्रवार, नवंबर 28, 2008

ओह! मुंबई

हालाँकि मेरी कल्पना एक मानसिक विमंदित विहीन दुनिया की है, लेकिन अगर वह ऐसी ही है तो फ़िर मेंटली चैलेंड लोगों की दुनिया क्या बुरी है?

बुधवार, नवंबर 26, 2008

क्या है, एम्. आर.

मानसिक विमंदिता के लिए अब तक अधिकांश जानकारी अंग्रेजी में ही उपलब्ध है । ऐसा नही की उसका हिन्दी में अनुवाद नही हो सकता , लेकिन कुछ तकनिकी शब्दों की जटिलता के कारण शुरू के कुछ लेख अंग्रेजी में फ़िर जटिल शब्दों से परिचय होने के बाद हिन्दी लेख में उनका उपयोग सार्थक होगा।

मंगलवार, नवंबर 25, 2008

क्या है मानसिक विमंदिता ?


मानसिक विमंदिता/ Mental Retardation

Mental Retardation is a delay, or slowness, in a child’s mental development। The child with mental retardation learns things more slowly than other children of the same age। In the beginning he may be late to smile, to move, to show interest in things, use his hands, sit, walk, speak, and understand or he may develop some of these skills more quickly, but be slower in others। To explain further, a child with mental retardation faces difficulties in learning, in using past experiences for the solution of present problems। He finds it difficult to remember, to understand and adjust to different situations। He does not develop mentally or even physically at the same rate as other children of the same age। For example, a child may be 8 years old but may have the abilities of a 4 or 5 year old child, or a 12 year old child may behave like a 4-5 year old or even less।







सोमवार, नवंबर 24, 2008

वोट डालनें का अधिकार मत छोड़ना

विमंदित बच्चों के बारे में बात करते हुए राजनीति पर चर्चा करने का मेरा कोई इरादा नहीं है। इनदिनों चारों और चल रही चुनावी चर्चाओं के बीच केवल यह कहना जरुरी लग रहा है कि अगर कोई नेता या उसकी पार्टी हमारे विशेष जरूरतों वाले बच्चों की बात नहीं करे या इनके लिए कोई चुनावी वादा नही करे तो इस बात की परवाह न करें। उन पर नाराज होकर अपनी ताकत को बेकार न जाने दें। वोट डालने के मामले में उदासीन न हों। अपने मताधिकार का उपयोग जरुर करें। हो सकता है हमारी जरुरारों की मांग अभी जंगल में रोने के सिवाय कुछ नहीं, लेकिन हमारा यह वोट सिर्फ चुनाव लड़ने वालों की ही किस्मत नहीं बदलेगा, यह हमारी भी किस्मत बदलेगा। हम जिस तरह के उम्मीदवार को वोट देंगे, हमारा मुस्तकबिल भी वैसा ही होगा। वोट ही हमारी ताकत है। अगर सभी वोट डालें और सही आदमी को चुनें तो मुझे नहीं लगता कि बिजली, पानी, सड़क, स्कूल या रोजगार के साथ हमारे विमंदित बच्चों की दिक्कत भी दूर होगी। वोट ही हमें तरक्की के रास्ते पर ले जा सकता है।
आजादी यही तो है। यहां हम अपनी मर्जी का हुक्मरान चुनते है जो हमारी मर्जी से काम करता है। अगर वह हमारे लिए काम नहीं करेगा तो हम उसे बदल देंगे। इसी पोलिंग बूथ के रास्ते हमें मंजिल मिलेगी। हमें विमंदित बच्चों के विकास व समृद्धि की जरूरत है और यह सब हासिल करने का यह सबसे बढि़या तरीका है। अब सभी लोगों ने इस सच्चाई को समझ लिया है इसलिए वे अपने मत का प्रयोग करने के लिए वोट डालते हैं। अपने मताधिकार का प्रयोग करने से जी चुराने वालों को अपनी ताकत जानने की जरूरत है। वोट देना हमारा फर्ज है। इससे हमारी तकदीर बदलती है।
यही एक दिन होता है जिस दिन हम बादशाह होते है और अगले कुछ सालों तक किसी और को बादशाहत देते है ताकि वह हमारे लिए काम करे। अच्छी हुकूमत होगी तो ये दिक्कतें दूर हो जाएंगी।
अगर हम वोट डालने नहीं आएंगे तो फिर वही लोग हुकुमत करेंगे जो हमारी पसंद के नहीं होंगे और जिन्हे हमारी कोई चिंता नहीं होगी। आपने कभी वोट डाला है? अगर नहीं तो फिर इस बार आप वोट जरुर डालो, अपने आप पता चल जाएगा कि अपनी ताकत का सही इस्तेमाल करना कैसा लगता है।

गुरुवार, नवंबर 20, 2008

विमंदिता से बचाता है स्तनपान


मां का दूध माने ..... best mental health


यदि आप अपने बच्चे को स्तनपान कराने से कतराती है, तो एक बार गंभीरता से विचार कीजिए.. क्या आप यह नहीं चाहतीं कि आपका शिशु हमेशा मानसिक विकलांगता से दूर और स्वस्थ रहे।
पिछले दिनों यूरोपीय मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार जो महिलाएं अपने बच्चे को रोजाना अधिक समय तक स्तनपान कराती है, वे एक तरह से उसके रोगों से लड़ने की क्षमता को मजबूत कर रही होती है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि शिशु जब स्तनपान करते है, तो उन्हे बोतल से दूध पीने के मुकाबले अधिक मेहनत पड़ती है और उन्हे अधिक मात्रा में ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। शिशुओं की यह मेहनत बेकार नहीं जाती। कारण वे जैसे-जैसे बड़े होते है, उनके फेफड़े ज्यादा मजबूत होते जाते है। दिमाग में आक्सीजन की आवक बढ़ जाती है। जो मानसिक स्वास्थ से लिए जरुरी है।
इस संदर्भ में अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का भी कहना है कि जो शिशु लंबे समय तक दूध पीते रहते है, उनका वजन भी सही रहता है और उनके शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक मजबूत होती है।
अमेरिकी वैज्ञानिकों का कहना है कि हमने अपने शोध में लगभग एक हजार से अधिक बच्चों को शामिल किया। इन बच्चों का एक नियमित अंतराल पर चेकअप किया जाता रहा। प्रथम चार माह में यह पाया गया कि जिन बच्चों ने चार माह से अधिक समय तक लगातार स्तनपान किया था, वे ऐसा न करने वाले शिशुओं की तुलना में अधिक स्वस्थ थे।
इस संदर्भ में एक और खास बात देखने को मिली कि उन माताओं के बच्चे भी काफी स्वस्थ थे, जो माताएं अस्थमा और एलर्जी से भी पीड़ित थीं। अमेरिकी वैज्ञानिकों की इस बात पर जापान के शोधकर्ताओं ने भी मुहर लगा दी है। उनका कहना है कि शिशुओं द्वारा स्तनपान करना एक प्रकार की एक्सरसाइज है। जाहिर है छोटे बच्चे किसी अन्य प्रकार की कसरत तो कर नहीं सकते, इसलिए ये कसरत उनके काफी काम आती है।
यूके के हेल्थ डिपार्टमेंट की एक महिला अधिकारी का कहना है कि हम न केवल सरकारी, बल्कि गैरसरकारी अस्पतालों को अलिखित रूप से यह आदेश दे दिया है कि अस्पताल आने वाली महिलाओं को इस बात के लिए प्रेरित किया जाए कि वे अपने शिशुओं को कम से कम छह माह तक स्तनपान अवश्य कराएं। कुछ स्थितियों को छोड़कर किसी भी कीमत स्तनपान की अवधि चार माह से कम नहीं होनी चाहिए।
गौरतलब है कि इस संदर्भ में महिलाओं को जागरूक करने के लिए दुनिया के कई देशों में मां बनने वाली महिलाओं को बाकायदा प्रशिक्षण दिया जाता है कि उन्हे अपने नन्हे-मुन्ने को किस प्रकार से दूध पिलाना है।

शुक्रवार, नवंबर 14, 2008

नया कलाकार


यह बच्चा शुभदा का नया कलाकार है। इसने जो कुछ बनाया है उसमे इसकी सोच ओर भावनाएं समाहित हैं। बस जरुरत है, उस शक्ति की जिससे इसे हम भी महसूस कर सकें।

सोमवार, नवंबर 10, 2008

बुलंद हौंसलों से होती है हर मुश्किल आसान

'संभव-2008'
कड़ी मेहनत, लगन व बुलंद हौसले के साथ कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। यहां तक कि शारीरिक व मानसिक खामियां भी मंजिल पाने से रोक नहीं पातीं। रविवार को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सभागार में एसोसिएशन फॉर लर्निग आ‌र्ट्स एंड नोरमेटिव एक्शन द्वारा आयोजित 'संभव-2008' नामक सेमिनार में यह बात एक बार फिर सामने आई। सेमिनार में देशभर के समाजसेवियों, प्रोफेसरों व विद्वानों के बीच सार्क से जुड़े पांच सदस्य देशों के वरिष्ठ वक्ताओं ने विकलांगता पर विचार रखे।

विचार :
श्रीलंका के सुमेरा फाउंडेशन की अध्यक्ष सुनेत्रा भंडारनायके ने कहा कि समाज में विकलांगता को आज भी अभिशाप माना जाता है। इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है।
अन्य वक्ता के तौर पर विकलांग बच्चों का मनोबल बढ़ाने के लिए तत्पर गुरु सैयद सलाउद्दीन पाशा ने कहा कि विकलांगता शरीर से ज्यादा मानसिकता से जुड़ी दशा है। विश्वास और आत्मबल की औषधि से इस दशा में सुधार किया जा सकता है। नृत्य के माध्यम से इलाज करने वाली बेंगलुरु से आई नृत्य निर्देशक त्रिपुरा कश्यप ने कहा कि नृत्य की विभिन्न विधाओं से शारीरिक व मानसिक रूप से अक्षम बच्चों के मन व शरीर के बीच तारतम्य पैदा होता है। विभिन्न अंगों में गति उत्पन्न होती है व मांसपेशियों का तनाव कम होता है।
नेपाल के नेशनल फेडरेशन फोर डिसएबल की प्रतिनिधि शिल्पा थापा ने नेपाल में विकलांगों की दशा का तथ्यात्मक ब्योरा रखते हुए न केवल वहां के मौजूद कानूनों की चर्चा की, बल्कि उन तरीकों को बताया जिनके द्वारा वे ऐसे लोगों व समूहों की मदद कर रही हैं। इस अवसर पर चर्चित कानूनविद् व मानव अधिकार कार्यकर्ता इंदिरा जयसिंह ने देश के संविधान में विकलांगों को मिले समान अधिकारों का विस्तार से जिक्र किया और अपने कानूनी अनुभवों का हवाला दिया।
सेमिनार के समापन अवसर पर भारत समेत भूटान, नेपाल, श्रीलंका व बांग्लादेश से आए विकलांग बच्चों ने अपने हुनर का बेहतरीन प्रदर्शन कर ऐसा समां बांधा कि लोग भावविभोर हो गए और तालियों की गड़गड़ाहट से उनका मनोबल बढ़ाया।

रविवार, नवंबर 09, 2008

ब्रेक के बाद.... फ़िर हाजिर हैं !

हाँ..... वह ब्रेक कुछ ज्यादा ही लंबा हो गया।
दरअसल कोई अच्छा काम करना, कोई आसान काम नहीं होता।
हो सकता है आप इससे सहमत नहीं हों, लेकिन मेरे निजी अनुभव.....
खैर! इसे फ़िर शुरू करते हुए खुशी हो रही है।
हाय - हेल्लो के बाद इस बार भी बस हाजिरी लगा दें, अगली बात बिना किसी भूमिका के होगी ।
बस एक ब्रेक के बाद, छोटा सा ब्रेक।
शेष शुभ!
इति "शुभदा"