रविवार, दिसंबर 28, 2008

विकलांग बच्चे को ट्राई साइकिल देने का वायदा पूरा किया

सचिन नए साल की छुट्टियाँ मसूरी में बिता रहें है। वे अपने वायदे के पक्के हैं। पिछली बार मसूरी पहुंचे मास्टर ब्लास्टर ने एक विकलांग बच्चे को ट्राई साइकिल देने का वायदा किया था और इस बार उन्होंने वायदा निभाया। इन दिनों सचिन जमकर वादियों का लुत्फ उठा रहें हैं। उन्होंने अपने प्रशंसकों को भी मायूस नहीं किया और उनसे खूब बातें कीं।
नया साल मनाने मसूरी पहुंचे लिटिल मास्टर सचिन ने एक पूरा दिन बच्चों के साथ बिताया और आटोग्राफ दिए। सचिन को लेकर बच्चों में इस हद तक उत्साह था कि कागज न मिलने पर उन्होंने पत्थर पर ही आटोग्राफ ले लिए। सचिन रोजाना की तरह पत्‍ि‌न अंजलि, दोस्त संजय नारंग, क्रिकेटर समीर दिघे समेत अपने दोस्तों के साथ मार्निग वॉक पर निकले। सुबह के समय लाल टिब्बा से सचिन ने नागाधिराज हिमालय के दर्शन किए। सचिन ने लाल टिब्बा में चहलकदमी की और प्रशसंकों से जमकर बातचीत की।

सुबह से ही वाइन वर्ग ऐलन, सेंट जार्ज व अन्य स्कूलों के बच्चे भारी तादाद में चार दुकान में सचिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। सचिन ने फुर्सत से बच्चों की जिज्ञासा शांत की और जमकर आटोग्राफ दिए। एक बच्चे के पास कागज न होने पर पत्थर पर ही अपने आटोग्राफ दिए। उत्सुकता का आलम यह था कि कई बच्चे शाम तक भी चार दुकान में डटे रहे। सचिन ने लंढौर कैंट में संचालित एक स्वयंसेवी संस्था में रह रहे कोल्टी गांव के एक विकलांग बच्चे गुड्डू को ट्राई-साइकिल गिफ्ट की। सचिन के इस मानवीय चेहरे ने लोगों को अभिभूत कर दिया। सचिन जब पिछली बार मसूरी आए थे, तब उन्होंने गुड्डू को ट्राई-साइकिल देने का वायदा किया था, और उन्होंने आज साबित कर दिया कि वे अपने वादे के पक्के हैं। सचिन के हाथों ट्राई-साइकिल गिफ्ट मिलने से गुड्डू बेहद प्रफुल्लित हैं। दोपहर में सचिन वुडस्टॉक स्कूल सचिन नए साल तक मसूरी प्रवास पर रहेंगे। हालांकि सचिन ने अपने प्रवास के बारे में स्वयं कुछ नहीं बताया।

शुक्रवार, दिसंबर 26, 2008

नि:शक्तों के लिए महत्वाकांक्षी योजना

स्वपरायणता, प्रमस्तिकघात, मानसिक मंदता एवं बहु विकलांगता के क्षेत्र में कार्यरत राष्ट्रीय न्यास द्वारा ज्ञान प्रभा योजना, उद्यम नि:शक्त कल्याण के क्षेत्र में कार्य कर रही स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से आवेदन पत्र आमंत्रित किए गए हैं। ज्ञान प्रथा योजना के तहत यदि इन श्रेणियों के नि:शक्त, विद्यालयीय शिक्षा के बाद मान्यता प्राप्त संस्थान से स्वरोजगार रोजगार के लिए व्यावसायिक शिक्षा तथा प्रशिक्षण लेते हैं। तो उन्हें सात सौ रुपए मासिक छात्रवृत्ति देय होगी। ऐसे नि:शक्त अभ्यर्थी के परिवार की मासिक आय 15 हजार रुपए से अधिक नहीं होनी चाहिए।

उद्यम प्रभा योजना बी पी एल परिवार के नि:शक्त, जिनकी आयु 18 वर्ष या इससे अधिक है, के आर्थिक विकास और स्वरोजगार को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से प्रारंभ की गई है। इन चार श्रेणियों के नि:शक्तों के लिए एक लाख तक के ऋण पर 5 प्रतिशत प्रोत्साहन राशि तथा अन्य श्रेणियों के नि:शक्तों के लिए 3 प्रतिशत प्रोत्साहन राशि 5 वर्ष तक के लिए देय होगी। चयन पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर होगा। निरामया स्वास्थ्य बीमा योजना इन श्रेणियों के नि:शक्तों के लिए महत्वाकांक्षी योजना है।

यह योजना 15 हजार रुपए तक की वार्षिक आय वाले नि:शक्तों के लिए नि:शुल्क तथा इससे अधिक आय वालों के लिए दो सौ पचास रुपए तक का नि:शुल्क बीमा किए जाने का प्रावधान है। बीमित व्यक्ति को स्वास्थ्य कार्ड जारी किया जाएगा, जिसके आधार पर वह देश के किसी भी अस्पताल में इलाज कराकर चिकित्सा व्यय के पुनर्भरण हेतु पात्र होगा।

गुरुवार, दिसंबर 11, 2008

वो क्या जाने फटी बिवाई॥

पुनः सोचा था "प्र" को "प" लिखा जाए तो अंगहीनता का अहसास हो सकेगा। लेकिन........

जाके पाँव ना फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई।
और
जाके होय ना पाँव गोसाई, वो क्या जाने फटी बिवाई॥

मंगलवार, दिसंबर 09, 2008

चलो पतिज्ञा करें

चलो पतिज्ञा करें , कि पेम का पसार पारंभ करते हुए समाज के पति शतपतिशत योगदान देकर इस देश के सुधार कार्यक्रमों का पमुख हिस्सा बनने का पयास करें और निः शक्त बेसहारों को सहारा पदान करें !
इति शुभदा

गुरुवार, दिसंबर 04, 2008

बस दस वोट......पर हक़ तो मिला.

आज राजस्थान में ३.६२ करोड़ मतदाताओं में से करीब ६८ प्रतिशत ने मतदान किया। इनमे शुभदा की नजर में आए कम से कम १० वोट ऐसे लोगो के भी हैं, जिन्होंने विमंदित होने के बावजूद अपने वोट के हक़ हांसिल किए। इन विमंदितों के अभिभावकों को अब तक यही पता था कि मंद बुद्धि होने के कारण वे अच्छे या बुरे का विचार करने को आत्मनिर्भर नही हैं। मतदान के लिए अन्य पर निर्भर होने के कारण पहले चुनाव में कुछ मतदान कर्मचारिओं ने इन्हे वोट नहीं डालने दिया था। तब से ये बच्चे (?) १८ साल कि फिजिकल एज होने के बाद भी मताधिकार से वंचित थे।
इस बार भी मतदान वाले दिन कि शुरुआत पहले कि तरह ही हुई थी, लेकिन सुबह से घर में बैठे विमंदित मतदाताओं के लिए कुछ जिद्दी और जुझारू लोगों द्वारा किए गए प्रयासों के बाद दोपहर तक माहौल बदल चुका था।
परिस्थितियां वही पहले के चुनाव जैसी की मतदान के लिए अन्य की सलाह या निर्देश पर निर्भर होने के कारण इन्हे वोट नहीं डालने दिया जा सकता। यह समस्या भी उठाने कर्ण प्रयास हुआ की इन्हें जब किसी मेडिकल बोर्ड ने ही विमंदित या मंदबुद्धि माना है और इसका प्रमाण पत्र भी इनके पास है। प्रमाणपत्र में इनकी आईक्यू भी दर्ज है। ये मतदाता किसी के कहने पर वोट दे रहा है। ऐसे में उसे वोट नही देने दिया जा सकता। मतदान केन्द्र में मौजूद कुछ बुद्धिजीवियों ने भी अपने दिमाग पर जोर देने के बाद मतदान कर्मचारिओं की बात को सही माना और वक्त बर्बाद नहीं करने की सलाह भी दी। इनसे विमंदितों के पक्षधर जिद्दिओं को अलग से जूझना पड़ा।
मामला मतदान कर्मचारिओं से पीठासीन अधिकारी और फ़िर चुनाव पर्वेक्षकों तक पहुँची और पूरा मसला इस एक बात पर हल हो गया की अगर किसी व्यक्ति का नाम मतदाता सूचि में है तो उसे मतदान करने से नही रोका जा सकता फ़िर चाहे उसकी सोच या विचार की क्षमता का स्तर कुछ भी हो।
फ़िर शाम तक विभिन्न केन्द्रों में ऐसे कम से कम दस लोगों ने पूरे अधिकार के साथ वोट डाले। आगामी चुनाव से पहले उन लोगों के नाम भी मतदाता सूची में दर्ज होंगे जो अब तक मतदान से वंचित थे ।
शेष शुभ
"शुभदा"

बुधवार, दिसंबर 03, 2008

डिसेबिलिटी का दर्द कोई और क्यों नहीं समझ पाता?

इस क्रूर नियति को भी जीता जा सकता है!

मन में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो कोई भी बाधा रास्ते का रोड़ा नही बन सकती फ़िर भले ही निः शक्तता ही क्यों न हो। यदि हौसले बुल्लंद हों इस क्रूर नियति को भी जीता जा सकता है। देश-दुनिंया ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने निः शक्तता से हार नहीं मानी और अपने सपने को पूरा किया। ऐसी बहुत सी अच्छी - अच्छी बातें आज अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस के दिन कहने, सुनने और हौंसला अफजाई के लिए अच्छी ही होतीं हैं। लेकिन निः शक्तता का वास्तविक दर्द कोई निः शक्त या उसके परिजन से बेहतर कोई और क्यों नहीं समझ पाता?

विकास के तमाम बड़े बड़े दावों के विपरीत कड़वा सच यह है कि आज भी दुनिया की दस फीसदी आबादी किसी न किसी विकलांगता की शिकार है। दूसरे ग्रहों पर बसने का सपना देखने वाले मानव के लिए इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं हो सकती कि लगभग 65 करोड़ विकलांग आज भी अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल की तरह इस साल भी आज अंतरराष्ट्रीय विकलांग(?) दिवस मनाया जा रहा है और इस साल इस दिवस का मुख्य विषय याने थीम विकलांग व्यक्तियों के अधिकार उनकी गरिमा और सभी के लिए न्याय है। यह विषय सभी के लिए समान मानवाधिकार और विकलांगों की समाज में सहभागिता के उद्देश्य पर आधारित है। पूरे विश्व की आबादी में से 65 करोड़ से अधिक लोग किसी न किसी तरह की विकलांगता के साथ जीते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार विकसित देशों में विकलांगों की संख्या कम होने और वहां पर उन्हें सभी प्रकार के अधिकार और आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध होने के कारण स्थिति काफी अच्छी है। लेकिन विकासशील देशों में विकलांग अपने जीवनयापन और अधिकारों के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन उन्हें जितनी सफलता मिलनी चाहिए नहीं मिल पाई है।
विकलांगों तथा उनके कल्याण के लिए काम करने वाले संगठन नेशनल सेंटर फार प्रमोशन आफ एम्प्लायमेंट फार डिस्एबल्ड पीपुल [एनसीपीईडीपी] के प्रमुख जावेद आबिदी का मानना कि शिक्षा और रोजगार तो मुख्य मुद्दे हैं ही, लेकिन ढांचागत सुविधाओं का अभाव सबसे बड़ी समस्या है।
उनका कहना है कि सार्वजनिक इमारतों, परिवहन प्रणाली, स्कूल, कालेज आदि के अंदर जाने के लिए अनुकूल सुविधाओं का न होना सबसे बड़ी समस्या है। स्वयं व्हील चेयर पर चलते वाले आबिदी का कहना है कि अंदर जाने की सुविधा होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक विकलांग व्यक्ति को अपने घर से बाहर आने की कालेज या दफ्तर जाने के लिए बस पकड़ने की शापिंग काप्लेक्स जाने की या अन्य सार्वजनिक इमारतों में प्रवेश की वैसी ही सुविधा होनी चाहिए जैसी अन्य लोगों के लिए होती है।
इस दिवस का उद्देश्य विकलांगता से जुड़े मुद्दों के बारे में समझ को बढ़ावा देना और विकलांगों के अधिकारों तथा उनकी खुशहाली के लिए उनके पक्ष में समर्थन को बल देना है।

शुक्रवार, नवंबर 28, 2008

ओह! मुंबई

हालाँकि मेरी कल्पना एक मानसिक विमंदित विहीन दुनिया की है, लेकिन अगर वह ऐसी ही है तो फ़िर मेंटली चैलेंड लोगों की दुनिया क्या बुरी है?

बुधवार, नवंबर 26, 2008

क्या है, एम्. आर.

मानसिक विमंदिता के लिए अब तक अधिकांश जानकारी अंग्रेजी में ही उपलब्ध है । ऐसा नही की उसका हिन्दी में अनुवाद नही हो सकता , लेकिन कुछ तकनिकी शब्दों की जटिलता के कारण शुरू के कुछ लेख अंग्रेजी में फ़िर जटिल शब्दों से परिचय होने के बाद हिन्दी लेख में उनका उपयोग सार्थक होगा।

मंगलवार, नवंबर 25, 2008

क्या है मानसिक विमंदिता ?


मानसिक विमंदिता/ Mental Retardation

Mental Retardation is a delay, or slowness, in a child’s mental development। The child with mental retardation learns things more slowly than other children of the same age। In the beginning he may be late to smile, to move, to show interest in things, use his hands, sit, walk, speak, and understand or he may develop some of these skills more quickly, but be slower in others। To explain further, a child with mental retardation faces difficulties in learning, in using past experiences for the solution of present problems। He finds it difficult to remember, to understand and adjust to different situations। He does not develop mentally or even physically at the same rate as other children of the same age। For example, a child may be 8 years old but may have the abilities of a 4 or 5 year old child, or a 12 year old child may behave like a 4-5 year old or even less।







सोमवार, नवंबर 24, 2008

वोट डालनें का अधिकार मत छोड़ना

विमंदित बच्चों के बारे में बात करते हुए राजनीति पर चर्चा करने का मेरा कोई इरादा नहीं है। इनदिनों चारों और चल रही चुनावी चर्चाओं के बीच केवल यह कहना जरुरी लग रहा है कि अगर कोई नेता या उसकी पार्टी हमारे विशेष जरूरतों वाले बच्चों की बात नहीं करे या इनके लिए कोई चुनावी वादा नही करे तो इस बात की परवाह न करें। उन पर नाराज होकर अपनी ताकत को बेकार न जाने दें। वोट डालने के मामले में उदासीन न हों। अपने मताधिकार का उपयोग जरुर करें। हो सकता है हमारी जरुरारों की मांग अभी जंगल में रोने के सिवाय कुछ नहीं, लेकिन हमारा यह वोट सिर्फ चुनाव लड़ने वालों की ही किस्मत नहीं बदलेगा, यह हमारी भी किस्मत बदलेगा। हम जिस तरह के उम्मीदवार को वोट देंगे, हमारा मुस्तकबिल भी वैसा ही होगा। वोट ही हमारी ताकत है। अगर सभी वोट डालें और सही आदमी को चुनें तो मुझे नहीं लगता कि बिजली, पानी, सड़क, स्कूल या रोजगार के साथ हमारे विमंदित बच्चों की दिक्कत भी दूर होगी। वोट ही हमें तरक्की के रास्ते पर ले जा सकता है।
आजादी यही तो है। यहां हम अपनी मर्जी का हुक्मरान चुनते है जो हमारी मर्जी से काम करता है। अगर वह हमारे लिए काम नहीं करेगा तो हम उसे बदल देंगे। इसी पोलिंग बूथ के रास्ते हमें मंजिल मिलेगी। हमें विमंदित बच्चों के विकास व समृद्धि की जरूरत है और यह सब हासिल करने का यह सबसे बढि़या तरीका है। अब सभी लोगों ने इस सच्चाई को समझ लिया है इसलिए वे अपने मत का प्रयोग करने के लिए वोट डालते हैं। अपने मताधिकार का प्रयोग करने से जी चुराने वालों को अपनी ताकत जानने की जरूरत है। वोट देना हमारा फर्ज है। इससे हमारी तकदीर बदलती है।
यही एक दिन होता है जिस दिन हम बादशाह होते है और अगले कुछ सालों तक किसी और को बादशाहत देते है ताकि वह हमारे लिए काम करे। अच्छी हुकूमत होगी तो ये दिक्कतें दूर हो जाएंगी।
अगर हम वोट डालने नहीं आएंगे तो फिर वही लोग हुकुमत करेंगे जो हमारी पसंद के नहीं होंगे और जिन्हे हमारी कोई चिंता नहीं होगी। आपने कभी वोट डाला है? अगर नहीं तो फिर इस बार आप वोट जरुर डालो, अपने आप पता चल जाएगा कि अपनी ताकत का सही इस्तेमाल करना कैसा लगता है।

गुरुवार, नवंबर 20, 2008

विमंदिता से बचाता है स्तनपान


मां का दूध माने ..... best mental health


यदि आप अपने बच्चे को स्तनपान कराने से कतराती है, तो एक बार गंभीरता से विचार कीजिए.. क्या आप यह नहीं चाहतीं कि आपका शिशु हमेशा मानसिक विकलांगता से दूर और स्वस्थ रहे।
पिछले दिनों यूरोपीय मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार जो महिलाएं अपने बच्चे को रोजाना अधिक समय तक स्तनपान कराती है, वे एक तरह से उसके रोगों से लड़ने की क्षमता को मजबूत कर रही होती है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि शिशु जब स्तनपान करते है, तो उन्हे बोतल से दूध पीने के मुकाबले अधिक मेहनत पड़ती है और उन्हे अधिक मात्रा में ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। शिशुओं की यह मेहनत बेकार नहीं जाती। कारण वे जैसे-जैसे बड़े होते है, उनके फेफड़े ज्यादा मजबूत होते जाते है। दिमाग में आक्सीजन की आवक बढ़ जाती है। जो मानसिक स्वास्थ से लिए जरुरी है।
इस संदर्भ में अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का भी कहना है कि जो शिशु लंबे समय तक दूध पीते रहते है, उनका वजन भी सही रहता है और उनके शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक मजबूत होती है।
अमेरिकी वैज्ञानिकों का कहना है कि हमने अपने शोध में लगभग एक हजार से अधिक बच्चों को शामिल किया। इन बच्चों का एक नियमित अंतराल पर चेकअप किया जाता रहा। प्रथम चार माह में यह पाया गया कि जिन बच्चों ने चार माह से अधिक समय तक लगातार स्तनपान किया था, वे ऐसा न करने वाले शिशुओं की तुलना में अधिक स्वस्थ थे।
इस संदर्भ में एक और खास बात देखने को मिली कि उन माताओं के बच्चे भी काफी स्वस्थ थे, जो माताएं अस्थमा और एलर्जी से भी पीड़ित थीं। अमेरिकी वैज्ञानिकों की इस बात पर जापान के शोधकर्ताओं ने भी मुहर लगा दी है। उनका कहना है कि शिशुओं द्वारा स्तनपान करना एक प्रकार की एक्सरसाइज है। जाहिर है छोटे बच्चे किसी अन्य प्रकार की कसरत तो कर नहीं सकते, इसलिए ये कसरत उनके काफी काम आती है।
यूके के हेल्थ डिपार्टमेंट की एक महिला अधिकारी का कहना है कि हम न केवल सरकारी, बल्कि गैरसरकारी अस्पतालों को अलिखित रूप से यह आदेश दे दिया है कि अस्पताल आने वाली महिलाओं को इस बात के लिए प्रेरित किया जाए कि वे अपने शिशुओं को कम से कम छह माह तक स्तनपान अवश्य कराएं। कुछ स्थितियों को छोड़कर किसी भी कीमत स्तनपान की अवधि चार माह से कम नहीं होनी चाहिए।
गौरतलब है कि इस संदर्भ में महिलाओं को जागरूक करने के लिए दुनिया के कई देशों में मां बनने वाली महिलाओं को बाकायदा प्रशिक्षण दिया जाता है कि उन्हे अपने नन्हे-मुन्ने को किस प्रकार से दूध पिलाना है।

शुक्रवार, नवंबर 14, 2008

नया कलाकार


यह बच्चा शुभदा का नया कलाकार है। इसने जो कुछ बनाया है उसमे इसकी सोच ओर भावनाएं समाहित हैं। बस जरुरत है, उस शक्ति की जिससे इसे हम भी महसूस कर सकें।

सोमवार, नवंबर 10, 2008

बुलंद हौंसलों से होती है हर मुश्किल आसान

'संभव-2008'
कड़ी मेहनत, लगन व बुलंद हौसले के साथ कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। यहां तक कि शारीरिक व मानसिक खामियां भी मंजिल पाने से रोक नहीं पातीं। रविवार को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सभागार में एसोसिएशन फॉर लर्निग आ‌र्ट्स एंड नोरमेटिव एक्शन द्वारा आयोजित 'संभव-2008' नामक सेमिनार में यह बात एक बार फिर सामने आई। सेमिनार में देशभर के समाजसेवियों, प्रोफेसरों व विद्वानों के बीच सार्क से जुड़े पांच सदस्य देशों के वरिष्ठ वक्ताओं ने विकलांगता पर विचार रखे।

विचार :
श्रीलंका के सुमेरा फाउंडेशन की अध्यक्ष सुनेत्रा भंडारनायके ने कहा कि समाज में विकलांगता को आज भी अभिशाप माना जाता है। इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है।
अन्य वक्ता के तौर पर विकलांग बच्चों का मनोबल बढ़ाने के लिए तत्पर गुरु सैयद सलाउद्दीन पाशा ने कहा कि विकलांगता शरीर से ज्यादा मानसिकता से जुड़ी दशा है। विश्वास और आत्मबल की औषधि से इस दशा में सुधार किया जा सकता है। नृत्य के माध्यम से इलाज करने वाली बेंगलुरु से आई नृत्य निर्देशक त्रिपुरा कश्यप ने कहा कि नृत्य की विभिन्न विधाओं से शारीरिक व मानसिक रूप से अक्षम बच्चों के मन व शरीर के बीच तारतम्य पैदा होता है। विभिन्न अंगों में गति उत्पन्न होती है व मांसपेशियों का तनाव कम होता है।
नेपाल के नेशनल फेडरेशन फोर डिसएबल की प्रतिनिधि शिल्पा थापा ने नेपाल में विकलांगों की दशा का तथ्यात्मक ब्योरा रखते हुए न केवल वहां के मौजूद कानूनों की चर्चा की, बल्कि उन तरीकों को बताया जिनके द्वारा वे ऐसे लोगों व समूहों की मदद कर रही हैं। इस अवसर पर चर्चित कानूनविद् व मानव अधिकार कार्यकर्ता इंदिरा जयसिंह ने देश के संविधान में विकलांगों को मिले समान अधिकारों का विस्तार से जिक्र किया और अपने कानूनी अनुभवों का हवाला दिया।
सेमिनार के समापन अवसर पर भारत समेत भूटान, नेपाल, श्रीलंका व बांग्लादेश से आए विकलांग बच्चों ने अपने हुनर का बेहतरीन प्रदर्शन कर ऐसा समां बांधा कि लोग भावविभोर हो गए और तालियों की गड़गड़ाहट से उनका मनोबल बढ़ाया।

रविवार, नवंबर 09, 2008

ब्रेक के बाद.... फ़िर हाजिर हैं !

हाँ..... वह ब्रेक कुछ ज्यादा ही लंबा हो गया।
दरअसल कोई अच्छा काम करना, कोई आसान काम नहीं होता।
हो सकता है आप इससे सहमत नहीं हों, लेकिन मेरे निजी अनुभव.....
खैर! इसे फ़िर शुरू करते हुए खुशी हो रही है।
हाय - हेल्लो के बाद इस बार भी बस हाजिरी लगा दें, अगली बात बिना किसी भूमिका के होगी ।
बस एक ब्रेक के बाद, छोटा सा ब्रेक।
शेष शुभ!
इति "शुभदा"

बुधवार, जुलाई 16, 2008

मेंटल रिटायर्ड मत कहो ना !

दोस्त,
क्या कुछ देर के लिए ये कल्पना कर सकते हो की तुम्हारा कोई अपना ऐसा है जो दूसरों की तुलना में दिमागी रूप से कुछ कमजोर है। अब ये सोचो की आज की तेज रफ्तार जिन्दगी में इस तुम्हारे अपने को ओरों के साथ बने रहने के लिए क्या कुछ करना होगा? भगवान न करे की आपका अपना कोई ऐसा हो। लेकिन यह तो जाना ही जा सकता है की हमारे बीच हर सौ लोगों में से तीन लोग ऐसे ही होते हैं। महानगरों में इस सम्बन्ध में अब काफी लोगों को जानकारी होने लगी है, ये जानकर लोग ऐसे लोगों को मानसिक विकलांग कहते है। जो कुछ इनके बारे में कुछ कोमल भावना रखते हैं वे इनके लिए मानसिक विमंदित शब्द का उपयोग करते हैं। बस इससे ज्यादा कुछ नहीं।
अंग्रेजी में इस विषय में जानकारी कुछ अधिक है। इसलिए वहां भावना की कोमलता कुछ बेहतर है। इसलिए इंग्लिश में इन्हें मेंटली हेंडिकेप या मेंटली रिटायर्ड नहीं कहा जाता। बल्कि इनके लिए मेंटली चेइलेंड शब्द काम में लिया जाता है। तो आज की बात बस इतनी ही है की मेंटल रिटायर्ड मत कहो ना!
इति आपकी शुभदा ।
आपकी शुभदा

आज बस हाय हेल्लो!

आज कुछ खास बच्चों के लिए करने को कुछ खास तरीका हाथ आया है। इस ब्लॉग में उन मानसिक विमंदित बच्चों की चर्चा करुँगी जिन के बारे ख़ुद उनके लोग ही बोलने से कतराते हैं। आज तो ब्लॉग बनाते हुए ही काफी वक्त लग गया, ये ही भूल गई की शुरू कहाँ से करना था।