बुधवार, जनवरी 19, 2011

कच्ची मिट्टी का 'चढ़ता सूरज धीरे धीरे'

मंच पर और मंच के परे भी
नवांकुरों की अदभुत प्रस्तुति

शुभदा के बच्चों को कला अन्कुर का सहयोग

शुभदा नेटवर्क, अजमेर। कला और संगीत के क्षेत्र में सक्रीय कला अंकुर संस्था द्वारा आयोजित 'कच्ची मिट्टी' कार्यक्रम में उस समय सौंधी सुगंध का अहसास हुआ जब निशक्त बच्चों के लिए मदद का जज्बा सामने आया। संस्था की ओर से निशक्त बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था 'शुभदा' को व्हीलचेयर, ट्रैंपोलीन और फिजियो बॉल्स जैसे उपकरण दिए गए। उल्लेखनीय है कि विमंदित बच्चों को जीना सिखाने के लिए जरूरी प्रशिक्षण और पुनर्वास के लिए कार्यरत इस संस्था ने बहुत सीमित साधनों में भी बेहतर परिणाम प्रस्तुत किए जाने का उल्लेख किया गया। इस दौरान कला अंकुर की जयपुर शाखा के पूर्व अध्यक्ष स्व। मानस चतुर्वेदी को श्रद्धांजलि भी दी गई। कमलेंद्र झा, रमेश, अनिल जैन, कुसुम शर्मा और अन्य पदाधिकारियों के अलावा कई गणमान्य नागरिक मौजूद थे।
'चढ़ता सूरज धीरे धीरे'
इस कार्यक्रम के जरिए जवाहर रंगमंच में अजमेर के नन्हें कलाकारों ने भारतीय संस्कृति की झलक दिखाई। संगीत, नृत्य और अभिनय पर आधारित इस कार्यक्रम में मंच पर और मंच के परे सभी किरदार बच्चों ने ही निभाए। इस मौके पर कला अंकुर ने 'शुभदा' से जुड़े बच्चों की मदद के लिए हाथ बढ़ा कर आयोजन का गौरव दो-गुना बढ़ा दिया।
पूर्णिमा तोषनीवाल के संयोजन और परिकल्पना पर आधारित संगीत संध्या 'कच्ची मिट्टीÓ के जरिए इस आयोजन में संस्कारों के संदेश मिले। कार्यक्रम की शुरुआत 'कला अंकुर गीतÓ से की गई। जिसे पारुल और साथियों ने कराओके ट्रेक पर प्रस्तुत किया। इसके बाद भावपूर्ण गीत 'ऐ मालिक तेरे बंदे हमÓ पेश किया अंशिता शर्मा और साथियों ने। प्रस्तुति में खास बात थी कि गीत पेश करने वाले सभी कलाकार नन्हें थे, आर्केस्ट्रा पर संगत देने वाले भी नन्हें साधक ही थे। देवयानी पारिक ने शिव की महिमा 'मैं ही शिव हूं' के जरिए सर्वधर्म की अवधारणा के संस्कार देता गीत शिवोह पेश किया। इस मौके पर मेयो गल्र्स स्कूल की छात्राओं ने भी पाश्चात्य और भारतीय शैली के नृत्यों की प्रस्तुति दी। संस्कार पब्लिक स्कूल के विद्यार्थियों ने भी 'धरती माता' शीर्षक पर शानदार देश प्रेम से पूर्ण स्कीट पेश की। इस प्रस्तुति में पर्यावरण, पानी बिजली बचाने का संदेश दिया गया। इसके बाद 'चढ़ता सूरज धीरे धीरेÓ माहेश्वरी पब्लिक स्कूल के छात्रों ने पेश किया। शास्त्रीय संगीत पर आधारित नृत्य गीत, सितार, तबला व जलतरंग पर राग हंस ध्वनि की प्रस्तुतियां भी दी गईं।

मंगलवार, जनवरी 18, 2011

जयपुर में आमेर पर्यटन ? ना बाबा ना...



मॉन्यूमेंट्स पर एंट्री है जबर्दस्त चैलेंज


फिजिकली चैलेंज्ड को कुछ स्थानों पर व्हील चेयर उठाकर सीढिय़ां पार कराई जाती हैं


शहर के सभी मॉन्यूमेंट्स पर नहीं है फिजिकली चैलेंज्ड के लिए रैंप व्यवस्था


पर्यटन स्थलों पर सैर के साथ रोमांच का भी अपना मजा है, लेकिन फिजिकली चैलेंज्ड पर्यटकों के सामने सबसे बड़ा एडवेंचर तो उनका इन स्थानों में प्रवेश करना है। वजह है रैम्प की कमी। जयपुर शहर में रोज लाखों रुपए की आय कराने वाले ज्यादातर मॉन्यूमेंट्स पर फिजिकली चैलेंज्ड लोगों के रैम्प नहीं बने हुए। ऐसे कई पर्यटकों को व्हीलचेयर के साथ उठाकर सीढिय़ां तय करानी पड़ती हैं। इसमें रिस्क इतना है कि अगर थोड़ा भी चूके तो पर्यटक को ज्यादा नुकसान हो सकता है। हालात ये हैं कि विभाग ने अल्बर्ट हॉल पर तो लकड़ी का रैम्प बनाकर ऐसे लोगों को राहत दी है वहीं आमेर जैसे पर्यटन के सबसे प्रमुख स्थान पर कुछ समय पहले गणेशपोल के दोनों ओर बने रैम्प को तोड़ दिया गया।
सिर्फ आमेर ही नहीं, यह स्थिति लगभग सभी मॉन्यूमेंट्स की है। बात अगर आमेर से शुरू की जाए तो वहां पर कुछ समय पहले गणेश पोल के दोनों ओर रैम्प बने हुए थे, लेकिन दीवाने आम के सामने जब रेस्टोरेशन वर्क हुआ तो रैम्प को तोड़कर हटा दिया गया। अब पर्यटकों को व्हीलचेयर उठाकर सीढिय़ां पार करनी पड़ती हैं, ऐसे में हमेशा चोट लगने का खतरा बना रहता है। यहां प्रवेश का सबसे अहम रास्ता ही गणेशपोल है। उसी तरह पहले सुखनिवास से शीशमहल के बीच रैंप बना था जिसे भी तोड़ दिया गया। जब इस बारे में वहां के सुपरिंटेंडेंट जफरउल्लाह खान से पूछा गया तो वे कहते हैं कि महल में जहां भी इसकी जरूरत है वहां रैम्प बने हुए हैं। जलैब चौक से सिंघपोल गेट, सिंघपोल गेट के अंदर से दीवाने खास, दीवाने खास से मानसिंह महल तक रैम्प बने हुए हैं, लेकिन गणेश पोल के रैम्प के बारे में उन्हें लगता है वहां इसकी जरूरत ही नहीं है। वैसे महल में फिजिकली चैलेंज्ड लोगों के लिए बना रैम्प शिलामाता मंदिर का प्रवेश द्वार ही जिसे महल प्रशासन अपना मानते हैं लेकिन वो इस तरह से बना हुआ है कि थोड़ी सावधानी हटी आदमी लुढ़ककर सीधा जलेबचौक तक पहुंच जाएगा। हाल ही में इस रास्ते को मंदिर के ठीक सामने से सीढिय़ां हटाकर महल से जोड़ा गया है जो बहुत ही ज्यादा ढलान वाला है जहां से आना-जाना सहज नहीं है।