रविवार, दिसंबर 28, 2008

विकलांग बच्चे को ट्राई साइकिल देने का वायदा पूरा किया

सचिन नए साल की छुट्टियाँ मसूरी में बिता रहें है। वे अपने वायदे के पक्के हैं। पिछली बार मसूरी पहुंचे मास्टर ब्लास्टर ने एक विकलांग बच्चे को ट्राई साइकिल देने का वायदा किया था और इस बार उन्होंने वायदा निभाया। इन दिनों सचिन जमकर वादियों का लुत्फ उठा रहें हैं। उन्होंने अपने प्रशंसकों को भी मायूस नहीं किया और उनसे खूब बातें कीं।
नया साल मनाने मसूरी पहुंचे लिटिल मास्टर सचिन ने एक पूरा दिन बच्चों के साथ बिताया और आटोग्राफ दिए। सचिन को लेकर बच्चों में इस हद तक उत्साह था कि कागज न मिलने पर उन्होंने पत्थर पर ही आटोग्राफ ले लिए। सचिन रोजाना की तरह पत्‍ि‌न अंजलि, दोस्त संजय नारंग, क्रिकेटर समीर दिघे समेत अपने दोस्तों के साथ मार्निग वॉक पर निकले। सुबह के समय लाल टिब्बा से सचिन ने नागाधिराज हिमालय के दर्शन किए। सचिन ने लाल टिब्बा में चहलकदमी की और प्रशसंकों से जमकर बातचीत की।

सुबह से ही वाइन वर्ग ऐलन, सेंट जार्ज व अन्य स्कूलों के बच्चे भारी तादाद में चार दुकान में सचिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। सचिन ने फुर्सत से बच्चों की जिज्ञासा शांत की और जमकर आटोग्राफ दिए। एक बच्चे के पास कागज न होने पर पत्थर पर ही अपने आटोग्राफ दिए। उत्सुकता का आलम यह था कि कई बच्चे शाम तक भी चार दुकान में डटे रहे। सचिन ने लंढौर कैंट में संचालित एक स्वयंसेवी संस्था में रह रहे कोल्टी गांव के एक विकलांग बच्चे गुड्डू को ट्राई-साइकिल गिफ्ट की। सचिन के इस मानवीय चेहरे ने लोगों को अभिभूत कर दिया। सचिन जब पिछली बार मसूरी आए थे, तब उन्होंने गुड्डू को ट्राई-साइकिल देने का वायदा किया था, और उन्होंने आज साबित कर दिया कि वे अपने वादे के पक्के हैं। सचिन के हाथों ट्राई-साइकिल गिफ्ट मिलने से गुड्डू बेहद प्रफुल्लित हैं। दोपहर में सचिन वुडस्टॉक स्कूल सचिन नए साल तक मसूरी प्रवास पर रहेंगे। हालांकि सचिन ने अपने प्रवास के बारे में स्वयं कुछ नहीं बताया।

शुक्रवार, दिसंबर 26, 2008

नि:शक्तों के लिए महत्वाकांक्षी योजना

स्वपरायणता, प्रमस्तिकघात, मानसिक मंदता एवं बहु विकलांगता के क्षेत्र में कार्यरत राष्ट्रीय न्यास द्वारा ज्ञान प्रभा योजना, उद्यम नि:शक्त कल्याण के क्षेत्र में कार्य कर रही स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से आवेदन पत्र आमंत्रित किए गए हैं। ज्ञान प्रथा योजना के तहत यदि इन श्रेणियों के नि:शक्त, विद्यालयीय शिक्षा के बाद मान्यता प्राप्त संस्थान से स्वरोजगार रोजगार के लिए व्यावसायिक शिक्षा तथा प्रशिक्षण लेते हैं। तो उन्हें सात सौ रुपए मासिक छात्रवृत्ति देय होगी। ऐसे नि:शक्त अभ्यर्थी के परिवार की मासिक आय 15 हजार रुपए से अधिक नहीं होनी चाहिए।

उद्यम प्रभा योजना बी पी एल परिवार के नि:शक्त, जिनकी आयु 18 वर्ष या इससे अधिक है, के आर्थिक विकास और स्वरोजगार को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से प्रारंभ की गई है। इन चार श्रेणियों के नि:शक्तों के लिए एक लाख तक के ऋण पर 5 प्रतिशत प्रोत्साहन राशि तथा अन्य श्रेणियों के नि:शक्तों के लिए 3 प्रतिशत प्रोत्साहन राशि 5 वर्ष तक के लिए देय होगी। चयन पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर होगा। निरामया स्वास्थ्य बीमा योजना इन श्रेणियों के नि:शक्तों के लिए महत्वाकांक्षी योजना है।

यह योजना 15 हजार रुपए तक की वार्षिक आय वाले नि:शक्तों के लिए नि:शुल्क तथा इससे अधिक आय वालों के लिए दो सौ पचास रुपए तक का नि:शुल्क बीमा किए जाने का प्रावधान है। बीमित व्यक्ति को स्वास्थ्य कार्ड जारी किया जाएगा, जिसके आधार पर वह देश के किसी भी अस्पताल में इलाज कराकर चिकित्सा व्यय के पुनर्भरण हेतु पात्र होगा।

गुरुवार, दिसंबर 11, 2008

वो क्या जाने फटी बिवाई॥

पुनः सोचा था "प्र" को "प" लिखा जाए तो अंगहीनता का अहसास हो सकेगा। लेकिन........

जाके पाँव ना फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई।
और
जाके होय ना पाँव गोसाई, वो क्या जाने फटी बिवाई॥

मंगलवार, दिसंबर 09, 2008

चलो पतिज्ञा करें

चलो पतिज्ञा करें , कि पेम का पसार पारंभ करते हुए समाज के पति शतपतिशत योगदान देकर इस देश के सुधार कार्यक्रमों का पमुख हिस्सा बनने का पयास करें और निः शक्त बेसहारों को सहारा पदान करें !
इति शुभदा

गुरुवार, दिसंबर 04, 2008

बस दस वोट......पर हक़ तो मिला.

आज राजस्थान में ३.६२ करोड़ मतदाताओं में से करीब ६८ प्रतिशत ने मतदान किया। इनमे शुभदा की नजर में आए कम से कम १० वोट ऐसे लोगो के भी हैं, जिन्होंने विमंदित होने के बावजूद अपने वोट के हक़ हांसिल किए। इन विमंदितों के अभिभावकों को अब तक यही पता था कि मंद बुद्धि होने के कारण वे अच्छे या बुरे का विचार करने को आत्मनिर्भर नही हैं। मतदान के लिए अन्य पर निर्भर होने के कारण पहले चुनाव में कुछ मतदान कर्मचारिओं ने इन्हे वोट नहीं डालने दिया था। तब से ये बच्चे (?) १८ साल कि फिजिकल एज होने के बाद भी मताधिकार से वंचित थे।
इस बार भी मतदान वाले दिन कि शुरुआत पहले कि तरह ही हुई थी, लेकिन सुबह से घर में बैठे विमंदित मतदाताओं के लिए कुछ जिद्दी और जुझारू लोगों द्वारा किए गए प्रयासों के बाद दोपहर तक माहौल बदल चुका था।
परिस्थितियां वही पहले के चुनाव जैसी की मतदान के लिए अन्य की सलाह या निर्देश पर निर्भर होने के कारण इन्हे वोट नहीं डालने दिया जा सकता। यह समस्या भी उठाने कर्ण प्रयास हुआ की इन्हें जब किसी मेडिकल बोर्ड ने ही विमंदित या मंदबुद्धि माना है और इसका प्रमाण पत्र भी इनके पास है। प्रमाणपत्र में इनकी आईक्यू भी दर्ज है। ये मतदाता किसी के कहने पर वोट दे रहा है। ऐसे में उसे वोट नही देने दिया जा सकता। मतदान केन्द्र में मौजूद कुछ बुद्धिजीवियों ने भी अपने दिमाग पर जोर देने के बाद मतदान कर्मचारिओं की बात को सही माना और वक्त बर्बाद नहीं करने की सलाह भी दी। इनसे विमंदितों के पक्षधर जिद्दिओं को अलग से जूझना पड़ा।
मामला मतदान कर्मचारिओं से पीठासीन अधिकारी और फ़िर चुनाव पर्वेक्षकों तक पहुँची और पूरा मसला इस एक बात पर हल हो गया की अगर किसी व्यक्ति का नाम मतदाता सूचि में है तो उसे मतदान करने से नही रोका जा सकता फ़िर चाहे उसकी सोच या विचार की क्षमता का स्तर कुछ भी हो।
फ़िर शाम तक विभिन्न केन्द्रों में ऐसे कम से कम दस लोगों ने पूरे अधिकार के साथ वोट डाले। आगामी चुनाव से पहले उन लोगों के नाम भी मतदाता सूची में दर्ज होंगे जो अब तक मतदान से वंचित थे ।
शेष शुभ
"शुभदा"

बुधवार, दिसंबर 03, 2008

डिसेबिलिटी का दर्द कोई और क्यों नहीं समझ पाता?

इस क्रूर नियति को भी जीता जा सकता है!

मन में कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो कोई भी बाधा रास्ते का रोड़ा नही बन सकती फ़िर भले ही निः शक्तता ही क्यों न हो। यदि हौसले बुल्लंद हों इस क्रूर नियति को भी जीता जा सकता है। देश-दुनिंया ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने निः शक्तता से हार नहीं मानी और अपने सपने को पूरा किया। ऐसी बहुत सी अच्छी - अच्छी बातें आज अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस के दिन कहने, सुनने और हौंसला अफजाई के लिए अच्छी ही होतीं हैं। लेकिन निः शक्तता का वास्तविक दर्द कोई निः शक्त या उसके परिजन से बेहतर कोई और क्यों नहीं समझ पाता?

विकास के तमाम बड़े बड़े दावों के विपरीत कड़वा सच यह है कि आज भी दुनिया की दस फीसदी आबादी किसी न किसी विकलांगता की शिकार है। दूसरे ग्रहों पर बसने का सपना देखने वाले मानव के लिए इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं हो सकती कि लगभग 65 करोड़ विकलांग आज भी अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल की तरह इस साल भी आज अंतरराष्ट्रीय विकलांग(?) दिवस मनाया जा रहा है और इस साल इस दिवस का मुख्य विषय याने थीम विकलांग व्यक्तियों के अधिकार उनकी गरिमा और सभी के लिए न्याय है। यह विषय सभी के लिए समान मानवाधिकार और विकलांगों की समाज में सहभागिता के उद्देश्य पर आधारित है। पूरे विश्व की आबादी में से 65 करोड़ से अधिक लोग किसी न किसी तरह की विकलांगता के साथ जीते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार विकसित देशों में विकलांगों की संख्या कम होने और वहां पर उन्हें सभी प्रकार के अधिकार और आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध होने के कारण स्थिति काफी अच्छी है। लेकिन विकासशील देशों में विकलांग अपने जीवनयापन और अधिकारों के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन उन्हें जितनी सफलता मिलनी चाहिए नहीं मिल पाई है।
विकलांगों तथा उनके कल्याण के लिए काम करने वाले संगठन नेशनल सेंटर फार प्रमोशन आफ एम्प्लायमेंट फार डिस्एबल्ड पीपुल [एनसीपीईडीपी] के प्रमुख जावेद आबिदी का मानना कि शिक्षा और रोजगार तो मुख्य मुद्दे हैं ही, लेकिन ढांचागत सुविधाओं का अभाव सबसे बड़ी समस्या है।
उनका कहना है कि सार्वजनिक इमारतों, परिवहन प्रणाली, स्कूल, कालेज आदि के अंदर जाने के लिए अनुकूल सुविधाओं का न होना सबसे बड़ी समस्या है। स्वयं व्हील चेयर पर चलते वाले आबिदी का कहना है कि अंदर जाने की सुविधा होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक विकलांग व्यक्ति को अपने घर से बाहर आने की कालेज या दफ्तर जाने के लिए बस पकड़ने की शापिंग काप्लेक्स जाने की या अन्य सार्वजनिक इमारतों में प्रवेश की वैसी ही सुविधा होनी चाहिए जैसी अन्य लोगों के लिए होती है।
इस दिवस का उद्देश्य विकलांगता से जुड़े मुद्दों के बारे में समझ को बढ़ावा देना और विकलांगों के अधिकारों तथा उनकी खुशहाली के लिए उनके पक्ष में समर्थन को बल देना है।