सुनीता अरोड़ा भी शायद एक और निकिता मेहता बन जाती जिन्हें अपने 24 हफ्ते के भ्रूण का गर्भपात कराना था। उनके डॉक्टर ने अंदेशा लगा लिया था कि उनका बच्चा कुछ जटिलताओं के साथ पैदा होगा, लेकिन जब सुनीता गर्भपात करवाने पहुंची तो तो उन्हें बताया गया कि 20 हफ्ते से ज्यादा होने पर गर्भपात गैरकानूनी है।जब उनका बच्चा अमन पैदा हुआ तो उनका डर सच में बदल गया। उनके बच्चे को ‘थैलेसीमिया मेजर’ (गंभीर रक्त की बीमारी जिसमें चोट लगने पर रक्त का बहाव रुकता नहीं)।
इसका मतलब यह कि हर महीने उन्हें 10,000 रुपए अमन के रक्त आधान और दवाओं पर खर्च करने पड़ते हैं। लेकिन इतना भारी खर्च उठाना इस मध्यम वर्गीय महिला की क्षमता में नहीं है। सात साल बाद आज भी सुनिता अमन को जन्म देने पर पछताती हैं। सुनीता कहती हैं कि, “मैं बच्चे को गिराना चाहती थी, लेकिन उन्होंने कहा कि अब काफी देर हो चुकी है, इसलिए मेरे पति और मैंने बच्चे को जन्म देने का निर्णय लिया। इससे भी बुरा हमने उसे किसी और के गोद में देने का विचार किया। काश हमें यह बच्चा न होता”। क्या सुनीता को प्रकृति के विरुद्ध चले जाना था? क्या इसी में मां और बच्चा दोनों की भलाई छिपी थी? लेकिन जब मुम्बई की एक गृहिणी निकिता मेहता और उनके पति ने अजन्मे बीमार बच्चे को गिराना चाहा तो यह विवाद छिड़ गया। आश्चर्यचकित तौर पर महिलाओं ने निकिता का पक्ष लिया और उनका मत है कि एक मां को अपने बच्च को जन्म देने या नहीं देने का पूरा अधिकार होना चाहिए। लेकिन आज कई माताएं ऐसी स्थिति में हैं जिस स्थिति में कभी निकिता भी होती अगर उसने एक गंभीर हृदय बीमारी से ग्रस्त बच्चे को जन्म दिया।
तस्वीर का दूसरा पहलू
जीनत का बच्चा शफी आम बच्चों की तरह नहीं हैं क्योंकि उसके दिल में भी एक छेद है। दो शल्यचिकित्सा के बाद भी उसे ठीक होने में अभी काफी वक्त लगेगा। लेकिन अगर जीनत को अपने बच्चे की बीमारी का पहले ही पता लग जाता, तो क्या वो अपने अजन्मे बच्चे को गिरा देती? इस पर जीनत कहती हैं कि, “नहीं, वह मेरे लिए वरदान है। मैं उसे उसी रूप में पसंद करती हूं जिस रूप में भगवान ने मुझे दिया है। किसी की जिंदगी लेने का अधिकार हमें नहीं है”। हृदय के विकार से ग्रस्त एक बच्चे के पिता रफीक किदवई का कहना है कि, “हमें प्रकृति के खिलाफ नहीं जाना चाहिए। यह नियमों और जिंदगी के खिलाफ है। इस तरह हम और हमारे बच्चे जिंदगी की मुश्किलों से लड़ने में सक्षम हो पाएंगे”। निकिता मेहता का नाम इतिहस में दर्ज हो जाएगा क्योंकि वो एक ऐसी मां के रूप में जानी जाएगी जिसने अपने बीमार अजन्मे बच्चे का गर्भपात कराने के लिए भारतीय न्यायपालिका का दरवाजा खटखटाया। भले ही न्यायालय ने उन्हें इस बात की इजाजत नहीं दी, लेकिन प्रकृति उनके साथ थी और निकिता का अपने आप ही गर्भपात हो गया। प्रकृति के खिलाफ जाना चाहिए कि नहीं, इसका कोई निश्चित जवाब भले ही नहीं मिले, लेकिन निकिता, सुनिता या जीनत जैसे माताओं की बात सुनें तो शायद सही जवाब मिल जाए।
(निलान्जला बोस की बदोलत)
मेरे विचार से यदि जन्म लेने वाले बच्चे में जटिलता तय हो तो बच्चे को गिरा देना चाहिए।
जवाब देंहटाएं- आनंद
एक माँ के लिए ये फ़ैसला करना आसन नही होता ...विचलित कर देता है ममता को...
जवाब देंहटाएंRegards