आपको किसी स्कूल की कक्षा में या कक्षा के बाहर कुछ ऐसे बच्चे मिले होंगे जिनकी जरूरतें कुछ विशेष प्रकार की होती हैं अर्थात बच्चों के सीखने तथा काम करने की क्षमता भिन्न-भिन्न होती है। कुछ बच्चे बहुत जल्दी और सरलता से सीखते है, जबकि कुछ बच्चे देर में तथा अधिक प्रयत्न करने पर सीख पाते हैं। कक्षा में कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं, जिनको खाने में कठिनाई होती है। सीखने के लिए उन्हें आपसे कुछ अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता होती है। कभी-कभी हम उनकी समस्याएं समझ पाते हैं, कभी-कभी नहीं समझ पाते। हमारी विशेष मदद के बावजूद अनेक समस्याएं बनी रहती है।
ये बच्चे कौन है? तथा इनकी अतिरिक्त आवश्यकताएं क्या है? यदि आप इन समस्याओं की प्रकृति और बच्चों की आवश्यकताओं को समझेंगे तो उनकी ठीक से मदद कर सकेंगे। चलिए ! हम उन बच्चों को सीखने की समस्याओं को तथा यह जानने का प्रयास करें कि हम उनकी कैसे मदद कर सकते है। हो सकता है कुछ बच्चों में अन्धापन, बहरापन, मानसिक पिछड़ापन जैसी गम्भीर अक्षमताएं हो अथवा इनसे सम्बन्धित दृष्टि श्रवण, वाणी, मानसिक मंदता एवं अधिगम अक्षमता जैसे दोष हों।हो सकता है ऐसे बच्चे आपके नजर में न हो, यह भी हो सकता है उनके माता-पिता हमसे सम्पर्क करने में भी हिचकिचाएं, हो सकता है उनको इसलिए भर्ती न किया हो कि वे माता-पिता की दृष्टि में विद्यालय में पढ़ने के योग्य नहीं है। या हम उनकी मदद नहीं कर सकते हैं।
ये बच्चे कौन है? तथा इनकी अतिरिक्त आवश्यकताएं क्या है? यदि आप इन समस्याओं की प्रकृति और बच्चों की आवश्यकताओं को समझेंगे तो उनकी ठीक से मदद कर सकेंगे। चलिए ! हम उन बच्चों को सीखने की समस्याओं को तथा यह जानने का प्रयास करें कि हम उनकी कैसे मदद कर सकते है। हो सकता है कुछ बच्चों में अन्धापन, बहरापन, मानसिक पिछड़ापन जैसी गम्भीर अक्षमताएं हो अथवा इनसे सम्बन्धित दृष्टि श्रवण, वाणी, मानसिक मंदता एवं अधिगम अक्षमता जैसे दोष हों।हो सकता है ऐसे बच्चे आपके नजर में न हो, यह भी हो सकता है उनके माता-पिता हमसे सम्पर्क करने में भी हिचकिचाएं, हो सकता है उनको इसलिए भर्ती न किया हो कि वे माता-पिता की दृष्टि में विद्यालय में पढ़ने के योग्य नहीं है। या हम उनकी मदद नहीं कर सकते हैं।
परन्तु यह सच है कि यदि उन्हें कुछ समय पहले ही विद्यालय में भर्ती किया गया होता और उनकी समस्याओं को समझकर सहायता दी गयी होती तो उनमें से बहुत से बच्चे सामान्य बच्चों की तरह सीख रहे होते या उनकी समस्या गम्भीर होने से रोकी जा सकती थी। यदि उनमें से कुछ बच्चों को विशिष्ट विद्यालयों में भेजा गया होता तो वहां उन्हें विशेष सुविधायें उपलब्ध हो जाती । विद्यालय अपनी कक्षाओं में तथा कक्षाओं के बाहर विशेष प्रकार से प्रोत्साहित करके कई प्रकार के विकलांगों की सहायता कर सकते हैं। अब तक हमने उनकी संवेदनशीलता सीखने सम्बन्धी समस्याओं को समझने की कोशिश ही नहीं की। हो सकता है इन बच्चों की सीखने सम्बन्धी समस्याओं के कुछ खास कारण रहे हों लेकिन फिर भी हमनें उन्हें लापरवाह, असावधान, मन्दबुद्धि अथवा कोई ऐसा नाम दिया हो जिससे समस्या और अधिक बिगड़ी हो।
कुछ लोगों का मानना है कि सभी प्रकार की विकलांगता वाले बच्चों की शिक्षा के लिए विशेष प्रकार की तकनीकों को आवश्यकता पड़ती है जो हमेशा सच नहीं है। रोजमर्रा की कक्षा में पढ़ाने वाले अध्यापकों को इन बच्चों को पढ़ाने के लिए विशेष तकनीक की आवश्यकता नहीं पड़ती है क्योंकि विशेष प्रकार की तकनीक की आवश्यकता उन विकलांग बच्चों को सिखाने के लिए पड़ती है जिनका रोग असाध्य या कठिन रूप धारण कर चुका है। साधारण रूप से विकलांग बच्चों की शिक्षा में विशेष तकनीक की नहीं वरन् शिक्षक के अनुकूल दृष्टिकोण के विकास की अधिक आवश्यकता होती है।बच्चों की अधिक समस्याओं का जन्म अनेक कारणों से होता है जिनमें कुछ कारण बच्चों के अन्दर निहित होते हैं, कुछ अन्य वातावरण से सम्बन्धित होते है। बच्चों की अधिगम समस्याओं से सम्बन्धित आन्तरिक कारण निम्नवत् हो सकते है।
बौद्धिक क्रियाकलाप का निम्नस्तर तथा विकास की मन्दगति।
दृष्टि विषयक समस्या (देखने में कठिनाई)।
श्रवण तथा वाक समस्या (सुनने तथा बोलने में कठिनाई)
हाथ-पैर का क्षतिग्रस्त होना या हाथ-पैर का न होना, अंगों की विकृति, मांसपेशियों के तालमेल में समस्या होने सेक्रियाकलाप में कठिनाई।
मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं जैसे प्रत्यक्षीकरण, अवधान, स्मृति विषयक समस्याए ।
दृष्टि तथा मांसपेशियों में तालमेल न होने से पढ़ने-लिखने, वर्ण विन्यास में कठिनाई।
माता-पिता के स्नेह में कमी।
परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा बच्चों को दूसरे बच्चों की भांति समान स्तर पर स्वीकार न किया जाना अर्थात बच्चों को हीनभावना से देखना।
सीखने के समान अवसर न मिलना तथा बातचीत करने के कम अवसर मिलना।
शिशु स्तर पर लालन-पालन के अनुपयुक्त तरीके अपनाना।
शिक्षक का बच्चे से कम लगाव होना।
सीखने की गति धीमी होने पर बच्चे के प्रति गलत धारणा बना लेना।
कक्षा में अनुकूल सामाजिक वातावरण न होना।
सामान्य बच्चों का विकलांग बच्चे के साथ प्रतिकूल व्यवहार करना।
उत्तरदायित्व निर्वहन तथा सुविधाओं की भागीदारी जैसी भावनाओं के प्रति उदासीनता होना।
बच्चों की विशिष्ट आवश्यकताओं तथा भौतिक सुविधाओं के सामंजस्य का अभाव होना।
प्राथमिक स्तर पर काम करने वाले अध्यापक यह समझ लें कि इन बच्चों की अपंगता का क्या स्वरूप है तथा किस हद तक अपंगता है, तभी वे प्राप्त जानकारी के अनुसार अन्हें शिक्षा देने के दायित्व का यथोचित रूप से निर्वहन करने के लिए तैयार हो सकेंगे। सामान्य विद्यालयों के अध्यापकों में इन बच्चों की शिक्षा संबंधी विशेष प्रकार की जरूरतों को समझने की आवश्यकता है जिससे उनकी आवश्यकता के अनुरूप अनुकूल शिक्षा को नियोजित कर सकें। इसका उत्तरदायित्व सबसे अधिक कक्षा के अध्यापकों पर आता है क्योंकि उनका इन बच्चों से सीधा सम्पर्क होता है तथा उन्हें बच्चों को ध्यान से देखने का अवसर भी मिलता ।
बौद्धिक क्रियाकलाप का निम्नस्तर तथा विकास की मन्दगति।
दृष्टि विषयक समस्या (देखने में कठिनाई)।
श्रवण तथा वाक समस्या (सुनने तथा बोलने में कठिनाई)
हाथ-पैर का क्षतिग्रस्त होना या हाथ-पैर का न होना, अंगों की विकृति, मांसपेशियों के तालमेल में समस्या होने सेक्रियाकलाप में कठिनाई।
मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं जैसे प्रत्यक्षीकरण, अवधान, स्मृति विषयक समस्याए ।
दृष्टि तथा मांसपेशियों में तालमेल न होने से पढ़ने-लिखने, वर्ण विन्यास में कठिनाई।
माता-पिता के स्नेह में कमी।
परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा बच्चों को दूसरे बच्चों की भांति समान स्तर पर स्वीकार न किया जाना अर्थात बच्चों को हीनभावना से देखना।
सीखने के समान अवसर न मिलना तथा बातचीत करने के कम अवसर मिलना।
शिशु स्तर पर लालन-पालन के अनुपयुक्त तरीके अपनाना।
शिक्षक का बच्चे से कम लगाव होना।
सीखने की गति धीमी होने पर बच्चे के प्रति गलत धारणा बना लेना।
कक्षा में अनुकूल सामाजिक वातावरण न होना।
सामान्य बच्चों का विकलांग बच्चे के साथ प्रतिकूल व्यवहार करना।
उत्तरदायित्व निर्वहन तथा सुविधाओं की भागीदारी जैसी भावनाओं के प्रति उदासीनता होना।
बच्चों की विशिष्ट आवश्यकताओं तथा भौतिक सुविधाओं के सामंजस्य का अभाव होना।
प्राथमिक स्तर पर काम करने वाले अध्यापक यह समझ लें कि इन बच्चों की अपंगता का क्या स्वरूप है तथा किस हद तक अपंगता है, तभी वे प्राप्त जानकारी के अनुसार अन्हें शिक्षा देने के दायित्व का यथोचित रूप से निर्वहन करने के लिए तैयार हो सकेंगे। सामान्य विद्यालयों के अध्यापकों में इन बच्चों की शिक्षा संबंधी विशेष प्रकार की जरूरतों को समझने की आवश्यकता है जिससे उनकी आवश्यकता के अनुरूप अनुकूल शिक्षा को नियोजित कर सकें। इसका उत्तरदायित्व सबसे अधिक कक्षा के अध्यापकों पर आता है क्योंकि उनका इन बच्चों से सीधा सम्पर्क होता है तथा उन्हें बच्चों को ध्यान से देखने का अवसर भी मिलता ।
(प्राइमरी के मास्टर प्रवीण त्रिवेदी से साभार)
बहुत सही लिखा है आपने..अच्छी जानकारी
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