सोमवार, नवंबर 10, 2008

बुलंद हौंसलों से होती है हर मुश्किल आसान

'संभव-2008'
कड़ी मेहनत, लगन व बुलंद हौसले के साथ कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। यहां तक कि शारीरिक व मानसिक खामियां भी मंजिल पाने से रोक नहीं पातीं। रविवार को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सभागार में एसोसिएशन फॉर लर्निग आ‌र्ट्स एंड नोरमेटिव एक्शन द्वारा आयोजित 'संभव-2008' नामक सेमिनार में यह बात एक बार फिर सामने आई। सेमिनार में देशभर के समाजसेवियों, प्रोफेसरों व विद्वानों के बीच सार्क से जुड़े पांच सदस्य देशों के वरिष्ठ वक्ताओं ने विकलांगता पर विचार रखे।

विचार :
श्रीलंका के सुमेरा फाउंडेशन की अध्यक्ष सुनेत्रा भंडारनायके ने कहा कि समाज में विकलांगता को आज भी अभिशाप माना जाता है। इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है।
अन्य वक्ता के तौर पर विकलांग बच्चों का मनोबल बढ़ाने के लिए तत्पर गुरु सैयद सलाउद्दीन पाशा ने कहा कि विकलांगता शरीर से ज्यादा मानसिकता से जुड़ी दशा है। विश्वास और आत्मबल की औषधि से इस दशा में सुधार किया जा सकता है। नृत्य के माध्यम से इलाज करने वाली बेंगलुरु से आई नृत्य निर्देशक त्रिपुरा कश्यप ने कहा कि नृत्य की विभिन्न विधाओं से शारीरिक व मानसिक रूप से अक्षम बच्चों के मन व शरीर के बीच तारतम्य पैदा होता है। विभिन्न अंगों में गति उत्पन्न होती है व मांसपेशियों का तनाव कम होता है।
नेपाल के नेशनल फेडरेशन फोर डिसएबल की प्रतिनिधि शिल्पा थापा ने नेपाल में विकलांगों की दशा का तथ्यात्मक ब्योरा रखते हुए न केवल वहां के मौजूद कानूनों की चर्चा की, बल्कि उन तरीकों को बताया जिनके द्वारा वे ऐसे लोगों व समूहों की मदद कर रही हैं। इस अवसर पर चर्चित कानूनविद् व मानव अधिकार कार्यकर्ता इंदिरा जयसिंह ने देश के संविधान में विकलांगों को मिले समान अधिकारों का विस्तार से जिक्र किया और अपने कानूनी अनुभवों का हवाला दिया।
सेमिनार के समापन अवसर पर भारत समेत भूटान, नेपाल, श्रीलंका व बांग्लादेश से आए विकलांग बच्चों ने अपने हुनर का बेहतरीन प्रदर्शन कर ऐसा समां बांधा कि लोग भावविभोर हो गए और तालियों की गड़गड़ाहट से उनका मनोबल बढ़ाया।