मां का दूध माने ..... best mental health
यदि आप अपने बच्चे को स्तनपान कराने से कतराती है, तो एक बार गंभीरता से विचार कीजिए.. क्या आप यह नहीं चाहतीं कि आपका शिशु हमेशा मानसिक विकलांगता से दूर और स्वस्थ रहे।
पिछले दिनों यूरोपीय मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार जो महिलाएं अपने बच्चे को रोजाना अधिक समय तक स्तनपान कराती है, वे एक तरह से उसके रोगों से लड़ने की क्षमता को मजबूत कर रही होती है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि शिशु जब स्तनपान करते है, तो उन्हे बोतल से दूध पीने के मुकाबले अधिक मेहनत पड़ती है और उन्हे अधिक मात्रा में ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। शिशुओं की यह मेहनत बेकार नहीं जाती। कारण वे जैसे-जैसे बड़े होते है, उनके फेफड़े ज्यादा मजबूत होते जाते है। दिमाग में आक्सीजन की आवक बढ़ जाती है। जो मानसिक स्वास्थ से लिए जरुरी है।
इस संदर्भ में अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का भी कहना है कि जो शिशु लंबे समय तक दूध पीते रहते है, उनका वजन भी सही रहता है और उनके शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक मजबूत होती है।
अमेरिकी वैज्ञानिकों का कहना है कि हमने अपने शोध में लगभग एक हजार से अधिक बच्चों को शामिल किया। इन बच्चों का एक नियमित अंतराल पर चेकअप किया जाता रहा। प्रथम चार माह में यह पाया गया कि जिन बच्चों ने चार माह से अधिक समय तक लगातार स्तनपान किया था, वे ऐसा न करने वाले शिशुओं की तुलना में अधिक स्वस्थ थे।
इस संदर्भ में एक और खास बात देखने को मिली कि उन माताओं के बच्चे भी काफी स्वस्थ थे, जो माताएं अस्थमा और एलर्जी से भी पीड़ित थीं। अमेरिकी वैज्ञानिकों की इस बात पर जापान के शोधकर्ताओं ने भी मुहर लगा दी है। उनका कहना है कि शिशुओं द्वारा स्तनपान करना एक प्रकार की एक्सरसाइज है। जाहिर है छोटे बच्चे किसी अन्य प्रकार की कसरत तो कर नहीं सकते, इसलिए ये कसरत उनके काफी काम आती है।
यूके के हेल्थ डिपार्टमेंट की एक महिला अधिकारी का कहना है कि हम न केवल सरकारी, बल्कि गैरसरकारी अस्पतालों को अलिखित रूप से यह आदेश दे दिया है कि अस्पताल आने वाली महिलाओं को इस बात के लिए प्रेरित किया जाए कि वे अपने शिशुओं को कम से कम छह माह तक स्तनपान अवश्य कराएं। कुछ स्थितियों को छोड़कर किसी भी कीमत स्तनपान की अवधि चार माह से कम नहीं होनी चाहिए।
गौरतलब है कि इस संदर्भ में महिलाओं को जागरूक करने के लिए दुनिया के कई देशों में मां बनने वाली महिलाओं को बाकायदा प्रशिक्षण दिया जाता है कि उन्हे अपने नन्हे-मुन्ने को किस प्रकार से दूध पिलाना है।