शुभदा जी !पराई पीर को इतने गहरे तक महसूस करना आपकी सहृदयता का प्रतीक है !मेरे ब्लॉग पर बेबाक टिप्पणी के लिए धन्यवाद !समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर पुराने पोस्ट में एक गीत ' मैं अंगारा ' पढ़ें ,शायद मेरी शख्सियत e for elephant ही न रहे !
I am "SHUBHDA". Working with Mental Disabals. So working for Wellfare of Persons With Autism, Cerebral Palsy, Mental Retardation and Maltiple Disabilities at Rajasthan, sins 2005.
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कुछ तो फर्क पड़ेगा... एक
लड़की सुबह समुद्र की सैर को निकली। उसने देखा सैंकड़ों मछलियां लहरों के
साथ तट पर आ जाती हैं और उनमें से अनेक किनारे पर ही छूट जाती हैं, कुछ देर
बाद बिना पानी के धूप में मर जाती हैं।
जब लहरें ताजी और मछलियां जीवित
थी, तभी उसने कुछ तय किया। उसने एक मछली उठाई और पानी में फेंक दी। उसके
पीछे एक आदमी और था, वह बोला- यह तुम क्या कर रही हो? तुम कितनों को बचा
सकोगी? इससे क्या फर्क पड़ेगा?
उस लड़की ने कोई जवाब नहीं दिया। दो कदम
बढ़कर एक और मछली को उठाकर पानी में डाल दिया और बोली- 'इससे एक को तो फर्क
पड़ता है।
सब लोग थोड़ा-थोड़ा फर्क लाएं तो बहुत बड़ा फर्क पड़ेगा।
swaagat likhte rahen
जवाब देंहटाएंतीव्र अनुभुति से निकला गम्भीर कथ्य. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबात तो सही है पर आज अचानक याद कैसे ???
जवाब देंहटाएंशुभदा जी !पराई पीर को इतने गहरे तक महसूस करना आपकी सहृदयता का प्रतीक है !मेरे ब्लॉग पर बेबाक टिप्पणी के लिए धन्यवाद !समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर पुराने पोस्ट में एक गीत ' मैं अंगारा ' पढ़ें ,शायद मेरी शख्सियत e for elephant ही न रहे !
जवाब देंहटाएंvery good...
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